मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ में उस समय बवाल खड़ा हो गया जब न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामिनाथन ने सुओ मोटो आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी। यह कार्रवाई एक वकील द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भेजी गई शिकायत के संदर्भ में हुई, जिसमें न्यायमूर्ति स्वामिनाथन पर जातिगत पक्षपात और वैचारिक पूर्वाग्रह के आरोप लगाए गए थे।
यह घटनाक्रम 24 जुलाई को एक सामान्य रिट अपील की सुनवाई के दौरान सामने आया। हालांकि अपील का शिकायत से कोई सीधा संबंध नहीं था, फिर भी न्यायमूर्ति स्वामिनाथन और न्यायमूर्ति के. राजशेखर की खंडपीठ ने वकील को अदालत में तलब किया और उनसे यह पूछा कि क्या वे अपनी शिकायत में किए गए आरोपों पर अब भी कायम हैं।
वकील द्वारा जून 2025 में भारत के मुख्य न्यायाधीश को भेजी गई 38 पृष्ठों की याचिका में किसी दंडात्मक कार्रवाई की मांग नहीं की गई थी, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस प्रक्रिया के तहत जांच की मांग की गई थी — यह वही प्रक्रिया है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सी. रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य (1995) में अनुमोदित किया था।

जब वकील ने मौखिक उत्तर देने से इनकार किया और लिखित प्रश्न की मांग की, तो पीठ ने रजिस्ट्रारी को लिखित प्रश्नावली भेजने का निर्देश दिया। कोर्ट ने वकील के खिलाफ पहले की अनुशासनात्मक कार्रवाई का भी हवाला देते हुए उनके आचरण को prima facie आपराधिक अवमानना करार दिया।
सेवानिवृत्त जजों की सार्वजनिक अपील
27 जुलाई को मद्रास हाईकोर्ट के आठ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने संयुक्त बयान जारी कर अदालत से आग्रह किया कि वह अवमानना की कार्यवाही से पीछे हटे। इस अपील पर न्यायमूर्ति के. चंद्रू, डी. हरिपरन्थमन सहित आठ जजों के हस्ताक्षर हैं।
बयान में कहा गया:
“यदि और जब भारत के मुख्य न्यायाधीश को लगे कि जांच की आवश्यकता है, तभी वह इन-हाउस जांच की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। और जब जांच समिति को आरोपों में prima facie सच्चाई दिखे, तभी आगे की कार्रवाई की जा सकती है।”
उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से जुड़ी हालिया प्रक्रिया का उदाहरण भी दिया।
यह प्रकरण एक बार फिर इस सवाल को उठाता है कि संविधान के अनुच्छेद 129 और 215 के तहत अदालतों के अवमानना अधिकार की सीमा क्या है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने 2023 में कहा था कि यह शक्तियां “न्यायालय की कार्यप्रणाली की रक्षा के लिए हैं, न कि न्यायाधीशों को आलोचना से बचाने के लिए।”
अगली सुनवाई 28 जुलाई को
कोर्ट ने वकील को 28 जुलाई को दोपहर 1:15 बजे पेश होकर इस प्रश्न का उत्तर देने को कहा है:
“क्या आप यह आरोप दोहराते हैं कि न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामिनाथन ने अपने न्यायिक कर्तव्यों के निर्वहन में जातिगत पक्षपात किया है?”