मंगलवार को मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पुलिस को निजी वाहनों पर ‘अधिवक्ता स्टिकर’ के दुरुपयोग के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की शक्ति प्रदान की। यह फैसला एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें वकीलों द्वारा ऐसे स्टिकरों का उपयोग करके यातायात नियमों से बचने और अनुचित प्रतिरक्षा का दावा करने की बात उजागर की गई थी।
याचिकाकर्ता एस देवदोस गांधी विल्सन ने बताया कि जहां चिकित्सकों को आपात स्थितियों के लिए वाहन स्टिकर की आवश्यकता हो सकती है, वहीं वकीलों को कोर्टरूम से बाहर ऐसे पहचानकर्ता की जरूरत नहीं है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इन स्टिकरों का उपयोग पुलिस की जांच से बचने और धमकाने के लिए किया जाना अवैध है और यह यातायात नियमों को कमजोर करता है।
न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश आर महादेवन और न्यायमूर्ति मोहम्मद शफीक शामिल थे, ने पुलिस को निर्णायक कार्रवाई करने की आवश्यकता पर जोर दिया। न्यायालय ने कहा, “पुलिस को किसी चीज़ से डरने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी यादृच्छिक स्टिकरों के उपयोग के खिलाफ कई आदेश मौजूद हैं। सही कार्रवाई करें, डरें नहीं।”
मद्रास बार एसोसिएशन (MBA) के सदस्यों और अन्य स्थानीय वकीलों द्वारा न केवल तमिलनाडु बार एसोसिएशन के स्टिकर्स का उपयोग किया जाता है, बल्कि मद्रास हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले MBA के सदस्य एक विशिष्ट सदस्यता स्टिकर का भी उपयोग करते हैं। याचिकाकर्ता ने सुझाव दिया कि ऐसे सदस्यता स्टिकर को कार के सनशेड के नीचे रखा जाए और केवल पार्किंग अटेंडेंट या पुलिस को दिखाने की आवश्यकता होने पर ही प्रदर्शित किया जाए, हालांकि न्यायालय ने इस प्रस्ताव का विशेष समर्थन नहीं किया।
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ACJ महादेवन ने स्पष्ट रूप से कहा, “हम इन सब में नहीं पड़ने वाले हैं। पुलिस को कार्रवाई की अनुमति है। यह केवल यह अदालत नहीं कह रही है, सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा है।”
सत्र के समापन पर, न्यायालय ने राज्य सरकार और तमिलनाडु बार काउंसिल को नोटिस जारी किया और उनसे दो सप्ताह में अगली सुनवाई से पहले अपना जवाब दाखिल करने की मांग की।