अमान्य विवाह (Void Marriage) से जन्मे बच्चे पिता के पैतृक संपत्ति के हिस्से में हकदार: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि अमान्य विवाह (Void Marriage) से पैदा हुए बच्चे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16(1) के तहत वैध माने जाएंगे और वे पैतृक संपत्ति में अपने माता-पिता के हिस्से में से हिस्सा पाने के हकदार हैं।

जस्टिस सी.वी. कार्तिकेयन और जस्टिस आर. विजयकुमार की खंडपीठ ने एक विभाजन वाद (Partition Suit) में निचली अदालत के फैसले को संशोधित करते हुए यह व्यवस्था दी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस निष्कर्ष को खारिज कर दिया जिसमें दूसरी शादी को वैध माना गया था। कोर्ट ने माना कि पहली पत्नी के जीवित रहते हुए किया गया दूसरा विवाह कानूनन अमान्य है, लेकिन इससे जन्मे बच्चों के संपत्ति अधिकारों को सुरक्षित रखा।

मामले की पृष्ठभूमि (Background)

यह मामला स्वर्गीय दुरईसामी उदियार की संपत्ति के बंटवारे से जुड़ा है। मामले के तथ्यों के अनुसार, दुरईसामी उदियार की दो पत्नियां थीं:

  1. अन्नपोट्टू अम्माल (पहली पत्नी/प्रतिवादी संख्या 1): जिनसे पांच बेटियां और दो बेटे थे।
  2. गांधीमती अम्माल (दूसरी पत्नी/प्रतिवादी संख्या 7): जिनसे तीन बेटियां और दो बेटे थे।

वादी (Plaintiffs), जिसमें दोनों विवाहों से जन्मी बेटियां और पोते-पोतियां शामिल थे, ने बेटों और पत्नियों के खिलाफ विभाजन का मुकदमा दायर किया था। उनका दावा था कि संपत्ति दुरईसामी उदियार द्वारा स्वयं अर्जित की गई थी, इसलिए सभी को बराबर हिस्सा मिलना चाहिए।

दूसरी ओर, प्रतिवादी पक्ष (बेटों और पहली पत्नी) का कहना था कि अधिकांश संपत्तियां पैतृक (Ancestral) थीं। विवाद का मुख्य बिंदु दूसरे विवाह की वैधता थी। पहली पत्नी के पक्ष का तर्क था कि दूसरी शादी 1957 में हुई थी, जब पहली पत्नी जीवित थी, इसलिए यह विवाह कानूनन अमान्य है। वहीं, दूसरी पत्नी के पक्ष ने दावा किया कि शादी 1949 से पहले हुई थी (मद्रास हिंदू द्विविवाह रोकथाम अधिनियम लागू होने से पहले), इसलिए यह वैध है।

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निचली अदालत ने 2013 में फैसला सुनाया था कि दूसरी शादी 1949 से पहले हुई थी और वैध है, जिसके खिलाफ पहली पत्नी और उनके बेटे ने हाईकोर्ट में अपील की थी।

पक्षकारों की दलीलें (Arguments)

अपीलकर्ताओं (पहली पत्नी और उनके बेटे) ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने शादी के साल को लेकर गलती की है। उन्होंने कहा कि गवाहों के बयानों और दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि शादी 1957 या 1955 के आसपास हुई थी। उन्होंने यह भी बताया कि दूसरी पत्नी के पिता ने एक वसीयत में अपनी बेटी (दूसरी पत्नी) को 8 साल की नाबालिग बताया था, जिससे 1949 से पहले शादी होना असंभव है। उनका तर्क था कि चूंकि शादी अमान्य है, इसलिए दूसरी पत्नी और उनके बच्चे पैतृक संपत्ति में हिस्से के हकदार नहीं हैं।

वहीं, उत्तरदाताओं (दूसरी पत्नी के बच्चे) ने तर्क दिया कि भले ही शादी को अमान्य मान लिया जाए, फिर भी बच्चे अपने पिता की संपत्ति में हिस्से के हकदार हैं।

कोर्ट का विश्लेषण और फैसला (Court’s Analysis)

विवाह की वैधता पर: हाईकोर्ट ने साक्ष्यों की बारीकी से जांच की। कोर्ट ने पाया कि दूसरी पत्नी (7वीं प्रतिवादी) गवाही देने के लिए अदालत में पेश नहीं हुईं। वहीं, पहली पत्नी के बेटे ने गवाही दी कि शादी 1957 में हुई थी। कोर्ट ने टिप्पणी की:

“बिना किसी ठोस आधार के, निचली अदालत ने यह मान लिया कि दुरईसामी उदियार का दूसरा विवाह 1949 से पहले हुआ था। साक्ष्यों के अभाव में यह निष्कर्ष गलत है।”

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हाईकोर्ट ने माना कि शादी 1957 में हुई थी और चूंकि उस समय पहली पत्नी जीवित थी, इसलिए यह विवाह अमान्य (Void) है।

बच्चों के संपत्ति अधिकार: विवाह को अमान्य घोषित करने के बाद, कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 के तहत बच्चों की स्थिति पर विचार किया। कोर्ट ने कहा कि धारा 16(1) अमान्य विवाह से जन्मे बच्चों को वैधता (Legitimacy) प्रदान करती है।

इस बिंदु पर, पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले रेवनसिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन (2023) का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस सिद्धांत को लागू करते हुए हाईकोर्ट ने कहा:

“संयुक्त परिवार की संपत्ति (Joint Family Property) के मामले में, ऐसे बच्चे केवल अपने माता-पिता की संपत्ति में हिस्से के हकदार होंगे, वे अपने अधिकार पर पैतृक संपत्ति में सीधे दावा नहीं कर सकते। पैतृक संपत्ति के बंटवारे पर जो हिस्सा माता-पिता को मिलता है, उसे उनकी स्वयं की संपत्ति माना जाता है और ऐसे बच्चों का उस हिस्से में अधिकार होगा।”

अंतिम निर्णय (Verdict)

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के डिक्री को संशोधित करते हुए संपत्ति का बंटवारा इस प्रकार तय किया:

  1. पैतृक संपत्ति (Ancestral Properties):
    • दुरईसामी उदियार और पहली पत्नी से जन्मे उनके 6 बच्चों में से प्रत्येक को 1/7 हिस्सा मिलेगा (सहदायिक अधिकार के तहत)।
    • दुरईसामी उदियार के हिस्से (1/7) का बंटवारा उनके सभी बच्चों (पहली पत्नी के 6 और दूसरी पत्नी के 5, कुल 11) के बीच होगा।
    • गणित: पिता का 1/7 हिस्सा 11 बच्चों में बंटेगा, यानी प्रत्येक को 1/77 हिस्सा मिलेगा।
    • निष्कर्ष:
      • पहली पत्नी के बच्चे: अपना 1/7 हिस्सा + पिता के हिस्से में से 1/77 = कुल 12/77 हिस्सा प्रत्येक को।
      • दूसरी पत्नी के बच्चे: केवल पिता के हिस्से में से अधिकार मिलेगा = कुल 1/77 हिस्सा प्रत्येक को।
  2. पहली पत्नी की निजी संपत्ति: चूंकि अपील के दौरान पहली पत्नी का निधन हो गया, उनकी संपत्ति केवल उनके अपने बच्चों (पहली शादी से जन्मे) को मिलेगी। (प्रत्येक को 1/6 हिस्सा)।
  3. दूसरी पत्नी की निजी संपत्ति: चूंकि अपील के दौरान दूसरी पत्नी का भी निधन हो गया, उनकी संपत्ति केवल उनके बच्चों को मिलेगी। (प्रत्येक को 1/5 हिस्सा)।
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इस प्रकार, मद्रास हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही विवाह कानूनन मान्य न हो, लेकिन उससे जन्मे बच्चों को उनके पिता के पैतृक संपत्ति वाले हिस्से से वंचित नहीं किया जा सकता।

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