मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया है, जिसमें पति को पत्नी को हर महीने ₹30,000 अंतरिम भरण-पोषण के रूप में देने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने कहा कि पत्नी के पास पहले से ही अचल संपत्तियाँ हैं और कंपनी से भारी लाभांश (डिविडेंड) के रूप में पर्याप्त आय हो रही है, इसलिए उसे अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति पी.बी. बालाजी ने हाल ही में यह आदेश पारित किया, जबकि पति ने 27 जनवरी 2023 के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
पति ने फैमिली कोर्ट में विवाह विच्छेद (डिवोर्स) की अर्जी दाखिल की थी। इसके जवाब में पत्नी ने अपने और बेटे के लिए अंतरिम भरण-पोषण की मांग की। फैमिली कोर्ट ने पति को दोनों के लिए ₹30,000 प्रतिमाह देने का निर्देश दिया। इस आदेश से असंतुष्ट होकर पति हाईकोर्ट पहुँचा।

न्यायमूर्ति बालाजी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजनेश बनाम नेहा मामले में तय सिद्धांतों के अनुसार, अंतरिम भरण-पोषण केवल वास्तविक आवश्यकता को देखते हुए तय होना चाहिए। यहाँ पत्नी के पास पर्याप्त संपत्ति और डिविडेंड से आय है, इसलिए अतिरिक्त भरण-पोषण उचित नहीं है।
अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी की संपत्ति और आय के बारे में दिए गए विवरणों पर विचार नहीं किया और सीधे ₹30,000 प्रतिमाह देने का आदेश पारित कर दिया।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि नाबालिग बेटे के लिए तय ₹30,000 प्रतिमाह का भरण-पोषण जारी रहेगा। अदालत ने यह भी दर्ज किया कि पति अब तक यह राशि दे रहा है और बेटे की नीट परीक्षा फीस ₹2.77 लाख का खर्च भी उसने उठाया है।
“उपरोक्त तथ्यों के मद्देनज़र मैं फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने को विवश हूँ,” न्यायमूर्ति बालाजी ने कहा और पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश रद्द कर दिया। हालांकि बेटे के लिए सहायता राशि जारी रखने का आदेश बरकरार रखा गया।