हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्त ड्राइवर का वेतन पुनरीक्षण रोकने का आदेश रद्द किया, बताया मनमाना और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन

न्यायमूर्ति शमिम अहमद की एकल पीठ ने स्टेट एक्सप्रेस ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (तमिलनाडु) द्वारा जारी उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ ग्रेड ड्राइवर को 2008 से 2016 तक के लिए वेतन पुनरीक्षण से वंचित किया गया था। अदालत ने कहा कि यह आदेश बिना रिकॉर्ड के पारित किया गया, जो न केवल मनमाना है बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है।

मामला क्या था?

याचिकाकर्ता ई. बालासुब्रमण्यम ने 16 अप्रैल 1987 को 2nd ग्रेड ड्राइवर के रूप में नौकरी शुरू की थी और 30 अप्रैल 2016 को सेवा निवृत्त हुए। उन्होंने अदालत से प्रार्थना की कि 21 सितंबर 2019 को वेतन पुनरीक्षण से इनकार करने वाला आदेश रद्द किया जाए और उन्हें 2008 से 2016 तक संशोधित वेतनमान का लाभ दिया जाए।

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याचिकाकर्ता की दलील

याचिकाकर्ता के वकील श्री बी. विनोद कुमार ने तर्क दिया कि निगम के नियमों के अनुसार हर 7 वर्षों में ड्राइवरों के वेतन की समीक्षा की जानी चाहिए। उन्होंने कई बार प्रतिनिधित्व दिया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बाद में उन्हें सूचित किया गया कि 11 बार सजा मिलने और 540 दिनों के लिए वेतन रहित अवकाश पर रहने के कारण वे पुनरीक्षित वेतन के पात्र नहीं हैं।

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उन्होंने कहा कि अधिकांश सजा आदेश कभी भी याचिकाकर्ता को नहीं सौंपे गए और न ही संबंधित रिकॉर्ड अदालत में प्रस्तुत किए गए।

निगम की दलील

सेटक (SETC) की ओर से श्री एस. सी. हेरोल्ड सिंह ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने वर्षों में कई अनुशासनात्मक उल्लंघन किए, जिनमें शराब के नशे में ड्यूटी पर आना, यात्रियों के साथ दुर्व्यवहार, और वाहन में अवैध वस्तुएं ले जाना शामिल है। उन्होंने कहा कि ऐसे में उन्हें अन्य कर्मचारियों के समान वेतन वृद्धि नहीं मिल सकती।

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अदालत का विश्लेषण

न्यायालय ने पाया कि:

“रिकॉर्ड में कहीं यह प्रमाण नहीं है कि याचिकाकर्ता पर वास्तव में 11 सजाएं लागू की गई थीं। बार-बार निर्देश देने के बावजूद, निगम न तो रिकॉर्ड प्रस्तुत कर सका और न ही यह स्पष्ट कर सका कि वेतन पुनरीक्षण न देने के लिए कौन-सा प्रावधान लागू किया गया।”

अदालत ने यह भी कहा:

“आदेश एक non-speaking order है, जो बिना किसी कानूनी आधार और उचित विचार के पारित किया गया है।”

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अंतिम निर्णय

मद्रास हाईकोर्ट ने 21 सितंबर 2019 का आदेश रद्द करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:

  • याचिकाकर्ता को 2008 से 2016 तक का वेतन पुनरीक्षण प्रदान किया जाए
  • सभी बकाया भुगतान 6 सप्ताह में करें
  • पेंशन का भुगतान नए संशोधित वेतन के अनुसार नियमित रूप से किया जाए

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि यह आदेश याचिकाकर्ता को प्रताड़ित करने की मंशा से पारित हुआ प्रतीत होता है।

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