मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह किसी भी नई सार्वजनिक योजना की घोषणा करते समय विशेष रूप से जीवित व्यक्तियों के नाम पर योजनाएं शुरू करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करे। यह मौखिक टिप्पणी एआईएडीएमके सांसद सी. वे. शन्मुगम और अधिवक्ता इनियन द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान दी गई।
याचिका में अनुरोध किया गया है कि जब तक इस रिट याचिका का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक राज्य सरकार को किसी भी जीवित व्यक्ति—विशेष रूप से वर्तमान मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन—के नाम पर योजना शुरू करने या किसी मौजूदा योजना का नाम बदलने से रोका जाए। याचिका में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और सरकारी विज्ञापन में विषय-वस्तु नियंत्रण समिति से अनुरोध किया गया है कि वे 1968 के चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश के पैरा 16A के तहत सत्तारूढ़ डीएमके के खिलाफ कार्रवाई करें।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय नारायण ने दलील दी कि राज्य सरकार ने “उंगलुडन स्टालिन” (आपके साथ, स्टालिन) नामक एक योजना शुरू की है, जिसमें मुख्यमंत्री के नाम, पार्टी के चुनाव चिह्न और वैचारिक नेताओं की तस्वीरों वाला विज्ञापन जारी किया गया। उन्होंने तर्क दिया कि यह सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के उन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है जो सरकारी खर्च पर राजनीतिक प्रचार को नियंत्रित करते हैं।

नारायण ने यह भी बताया कि 2 अगस्त को एक और योजना शुरू होने वाली है, और अदालत से अनुरोध किया कि वह डीएमके को इस तरह के प्रचार में कथित उल्लंघन दोहराने से रोके।
इसके जवाब में महाधिवक्ता पी.एस. रमण ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि सरकार द्वारा जारी विज्ञापन में कोई पार्टी चिह्न नहीं था और यह सभी नियमों के अनुरूप था। उन्होंने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (DIPR) के कोड सहित आधिकारिक विज्ञापन की प्रति भी अदालत में प्रस्तुत की। उन्होंने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत विज्ञापन सरकार द्वारा नहीं बल्कि एक ट्विटर हैंडल से लिया गया था।
डीएमके की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने याचिका को “राजनीतिक रूप से प्रेरित” बताया और आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता एक झूठा नैरेटिव पेश कर रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश एम.एम. श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की प्रथम पीठ ने निर्वाचन आयोग और राज्य सरकार दोनों को एक सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता को इसके बाद तीन दिन के भीतर प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति दी गई। अदालत ने कहा कि वह दलीलों के पूरे होने के बाद मामले की अंतिम सुनवाई करेगी।