मद्रास हाईकोर्ट ने संपत्ति विवादों में वकीलों द्वारा पेशे का दुरुपयोग करने पर गंभीर चिंता जताई है और कहा है कि कुछ युवा वकील, जो आर्थिक तंगी और मार्गदर्शन के अभाव में हैं, मुकदमेबाज पक्षकारों के लिए गुंडों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। जस्टिस सुंदर मोहन ने यह टिप्पणी Crl.O.P.Nos. 8329 & 7856 of 2025 में अग्रिम जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। मामला वकीलों की सहायता से संपत्ति पर जबरन कब्जा करने के आरोप से जुड़ा है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद चेन्नई के ओएमआर रोड स्थित करपक्कम गांव में 65,836 वर्ग फीट भूमि को लेकर है। याचिकाकर्ता सुशील लालवानी, आरती लालवानी और अधिवक्ता जे. विजयकुमार के खिलाफ क्राइम नंबर 105/2025 में भारतीय न्याय संहिता, 2023 और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम, 1984 के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, याचिकाकर्ताओं ने दीवानी न्यायालय के आदेश का बहाना बनाकर कुछ वकीलों को संपत्ति पर कब्जा करने भेजा, जिन्होंने कर्मचारियों पर हमला किया और सीसीटीवी कैमरे क्षतिग्रस्त कर दिए।
कोर्ट की तीखी टिप्पणी
जस्टिस सुंदर मोहन ने मामले की गंभीरता और वकीलों द्वारा परिसर में जबरदस्ती घुसने के दृश्य साक्ष्य पर टिप्पणी करते हुए कहा:
“वकीलों ने मुकदमेबाजों के लिए गुंडों की तरह काम किया है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे बल का नहीं बल्कि बुद्धि का प्रयोग करें। यह मामला इस बात की पुष्टि करता है कि कुछ वकील, दुर्भाग्यवश, यह भूल गए हैं या उन्हें बताया नहीं गया है कि वे एक महान पेशे से जुड़े हैं।”
कोर्ट ने बताया कि यह गतिविधियाँ संगठित ढंग से की जा रही हैं, जहां व्हाट्सऐप समूहों के जरिए वकीलों को इकट्ठा किया जाता है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के आचरण संहिता का हवाला देते हुए कोर्ट ने दोहराया:
“एक अधिवक्ता को विरोधी वकील या विपक्षी पक्ष के प्रति किसी भी अवैध या अनुचित कार्य में शामिल होने से इनकार करना चाहिए।”
युवा वकीलों को मार्गदर्शन और सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुए न्यायालय ने कहा:
“उपरोक्त निर्देश इस बात को ध्यान में रखते हुए दिए गए हैं कि जिन युवा वकीलों को मार्गदर्शन नहीं मिला है और जो आर्थिक रूप से परेशान हैं, वे इस तरह की गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं, यह समझे बिना कि इससे न केवल उनका करियर प्रभावित होगा बल्कि, जैसा कि पहले कहा गया, यह इस महान पेशे की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाएगा।”
शर्तों के साथ अग्रिम जमानत और संस्थागत उपाय
कोर्ट ने यह मानते हुए कि हिरासत में पूछताछ आवश्यक नहीं है, याचिकाकर्ताओं को सशर्त अग्रिम जमानत दी, जिसमें ये प्रमुख शर्तें रखी गईं:
- सुशील और आरती लालवानी को क्राइम नंबर 105/2025 के खाते में ₹10,00,000 जमा कराने होंगे तथा तमिलनाडु राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को ₹3,00,000 अदा करने होंगे।
- अधिवक्ता जे. विजयकुमार को ₹25,000 के निजी मुचलके के साथ दो जमानती प्रस्तुत करने होंगे।
- सभी याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह तक प्रतिदिन जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना होगा और सबूतों के साथ छेड़छाड़ या फरार होने से बचना होगा।
अनुशासनात्मक कार्रवाई हेतु दिशा-निर्देश:
- पुलिस को निर्देश दिया गया कि वे सभी शामिल वकीलों के नाम और भूमिका की सूचना तमिलनाडु बार काउंसिल को दें।
- बार काउंसिल को इन वकीलों के खिलाफ औपचारिक जांच शुरू कर रिपोर्ट कोर्ट को देने का निर्देश दिया गया।
- जिन जूनियर वकीलों का पूर्व में कोई दंडात्मक इतिहास नहीं है, लेकिन वे इस मामले में शामिल पाए गए, उन्हें एक वर्ष तक हर महीने बार काउंसिल के समक्ष पेश होकर कार्य रिपोर्ट देनी होगी।
- वरिष्ठ वकीलों से अनुरोध किया गया कि वे इन युवा वकीलों को नैतिक और पेशेवर आचरण की शिक्षा दें।
पुलिस अधिकारियों को निर्देश
कोर्ट ने चेन्नई के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वे सभी थाना प्रभारियों को यह निर्देश दें कि जो वकील अपने पेशेवर दर्जे का दुरुपयोग करके अवैध गतिविधियों में शामिल होते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियाँ केवल अग्रिम जमानत पर निर्णय तक सीमित हैं, लेकिन यह व्यापक चिंता का विषय है कि वकील अपने पेशे की सीमाओं से बाहर जाकर गतिविधियाँ कर रहे हैं, और इस पर तुरंत ध्यान देना आवश्यक है ताकि विधि व्यवसाय की गरिमा बनी रहे।