मद्रास हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की शक्तियों की सीमाओं को रेखांकित करते हुए स्पष्ट किया है कि एजेंसी कोई “ड्रोन” नहीं है जो अपनी मर्जी से किसी भी दिशा में हमला कर दे, और न ही वह कोई “सुपर कॉप” है जिसे हर प्रकार की कथित आपराधिक गतिविधियों की जांच करने का अधिकार है।
जस्टिस एम. एस. रमेश और जस्टिस वी. लक्ष्मीनारायणन की खंडपीठ ने यह टिप्पणी चेन्नई की आरकेएम पॉवरजेन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की। कंपनी ने ईडी द्वारा ₹901 करोड़ की फिक्स्ड डिपॉजिट को फ्रीज किए जाने को चुनौती दी थी, जो मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत दर्ज मामले से जुड़ी थी।
यह मामला छत्तीसगढ़ में पावर प्लांट के लिए कोल ब्लॉक आवंटन से जुड़ा है। सीबीआई ने इस सिलसिले में 2014 में प्राथमिकी दर्ज की थी, लेकिन 2017 में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, जिसमें किसी अनियमितता से इनकार किया गया। हालांकि, विशेष अदालत ने इस रिपोर्ट को खारिज कर कुछ बिंदुओं पर आगे जांच का निर्देश दिया। इसके बाद 2023 में सीबीआई ने एक पूरक रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अभियोजन योग्य सामग्री पाई गई।

ईडी ने इसके बाद आरकेएम पॉवरजेन और उसके होल्डिंग कंपनियों के परिसरों पर छापेमारी की और 31 जनवरी 2025 को ₹901 करोड़ की एफडी फ्रीज कर दी। इस आदेश को कंपनी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि PMLA की धारा 66(2) के अनुसार, यदि ईडी को जांच के दौरान किसी अन्य कानून के उल्लंघन की जानकारी मिलती है, तो वह उस पर खुद से कार्रवाई नहीं कर सकती। उसे संबंधित सक्षम एजेंसी को सूचित करना होता है, जो उस अपराध की जांच करने का अधिकार रखती है।
पीठ ने कहा, “अगर संबंधित जांच एजेंसी कोई मामला नहीं पाती है, तो ईडी स्वयं होकर उस दिशा में कार्रवाई नहीं कर सकती। ईडी की कार्रवाई की बुनियाद ‘प्रीडिकेट ऑफेंस’ (आधारभूत अपराध) और उससे जुड़ी ‘अपराध की आय’ होनी चाहिए। यह एक लिम्पेट माइन की तरह है, जो बिना जहाज के काम नहीं कर सकती — जहाज है प्रीडिकेट ऑफेंस। ईडी कोई लूटरता हुआ मिसाइल या ड्रोन नहीं है जो कहीं भी हमला कर दे।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि दस्तावेजों की समीक्षा से स्पष्ट होता है कि कथित आपराधिक गतिविधियों को लेकर किसी प्रकार की शिकायत दर्ज नहीं की गई थी। “ईडी कोई सुपर कॉप नहीं है जिसे हर मामले की जांच का अधिकार हो। कोई भी जांच तभी शुरू हो सकती है जब कोई शेड्यूल अपराध हुआ हो और उससे अपराध की आय उत्पन्न हुई हो।”