मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया है कि वह ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्तियों को शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक नौकरियों में आरक्षण देने को लेकर स्पष्ट निर्णय ले, ताकि उन्हें हर बार अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की आवश्यकता न पड़े।
यह निर्देश न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने एन. सुशमा और यू. सेम्मा अग्रवाल द्वारा दायर याचिका पर सोमवार को अंतरिम आदेश पारित करते हुए दिया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर को निर्धारित की है।
न्यायाधीश ने “तमिलनाडु स्टेट पॉलिसी फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स 2025” की सराहना की, जिसे 31 जुलाई 2025 से प्रभावी किया गया है। उन्होंने कहा कि इस नीति में अनेक सकारात्मक पहलें शामिल हैं, लेकिन धारा 3.7, जिसमें “रोजगार और शैक्षणिक संस्थानों में प्रतिनिधित्व का अधिकार” का उल्लेख है, उस पर सरकार की स्थिति स्पष्ट नहीं है।

न्यायाधीश ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या सरकार ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स समुदाय को क्षैतिज आरक्षण (horizontal reservation) देना चाहती है या नहीं — यह मांग समुदाय द्वारा लंबे समय से की जा रही है और विभिन्न अदालतों, जिनमें मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व आदेश भी शामिल हैं, ने इसका समर्थन किया है।
इसके अलावा, न्यायमूर्ति वेंकटेश ने यह भी कहा कि सरकार की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक ने बताया कि एलजीबीक्यूए+ (LGBQA+) समुदाय के लिए नीति अभी प्रक्रियाधीन है। इस पर टिप्पणी करते हुए न्यायाधीश ने कहा, “अब जब सरकार ने ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्तियों के लिए नीति बना दी है, तो एलजीबीक्यूए+ व्यक्तियों के लिए भी नीति बनाना समय की आवश्यकता है। यह प्रक्रिया तेज़ की जानी चाहिए।”