मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आशा एजुकेशन सोसाइटी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि ऑडिट रिपोर्ट में लगभग ₹200 करोड़ की वित्तीय अनियमितताओं का उल्लेख है, और ऐसे में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) द्वारा विस्तृत जांच आवश्यक है।
याचिका सोसाइटी के पदाधिकारियों — श्वेता चौकसे, जय नारायण चौकसे, धर्मेंद्र गुप्ता और अनुपम चौकसे — ने दायर की थी। उन्होंने EOW द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी को निरस्त करने की मांग की थी।
आशा एजुकेशन सोसाइटी कई शैक्षणिक संस्थान, एक मेडिकल कॉलेज और उससे संबद्ध अस्पताल का संचालन करती है। यह संस्था मध्य प्रदेश सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1973 के तहत पंजीकृत एक निजी संस्था है और सरकार से कोई वित्तीय सहायता प्राप्त नहीं करती।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि शिकायतकर्ता अनिल संघवी, जो सोसाइटी के पूर्व सदस्य हैं, ने पहले भी EOW में इसी तरह की शिकायत की थी, जिसे एजेंसी ने खारिज कर दिया था। उनका कहना था कि अब वही आरोप दोहराते हुए बिना नोटिस दिए या सफाई का मौका दिए FIR दर्ज कर ली गई। याचिकाकर्ताओं ने यह भी आशंका जताई कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा ने 9 अक्टूबर को पारित आदेश में कहा कि सोसाइटी की ऑडिट रिपोर्ट — जिसे प्रतिष्ठित ऑडिटर्स ने तैयार किया है और जिसे सरकार विभिन्न स्तरों पर स्वीकार करती है — में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताएं पाई गई हैं।
अदालत ने कहा, “सोसाइटी की ऑडिट रिपोर्ट में ₹200 करोड़ की वित्तीय अनियमितताओं का उल्लेख है। ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ताओं को कोई राहत नहीं दी जा सकती।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह मामला गंभीर है और इसमें EOW द्वारा विस्तृत जांच आवश्यक है।
सुनवाई के दौरान EOW ने केस डायरी पेश करते हुए बताया कि जांच अभी प्रारंभिक चरण में है। एजेंसी ने तर्क दिया कि कथित गबन की राशि और अनियमितताओं की प्रकृति को देखते हुए गहराई से जांच जरूरी है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि इस चरण पर न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नहीं होगा।
इस आदेश के साथ EOW को आशा एजुकेशन सोसाइटी में कथित ₹200 करोड़ की वित्तीय अनियमितताओं की जांच जारी रखने की अनुमति मिल गई है।