मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एम्स भोपाल को 2012 में की गई 14 “अयोग्य” स्टाफ सदस्यों की नियुक्तियों को लेकर आखिरी मौका दिया है कि वह अपना जवाब दाखिल करे। यह आदेश जनहित याचिका (PIL) के तहत आया है जिसमें इन नियुक्तियों को रद्द करने की मांग की गई है।
मुख्य न्यायाधीश एस.के. कौल और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने एम्स को चार सप्ताह की अंतिम अवधि दी है और स्पष्ट कर दिया है कि यदि इस समयसीमा के भीतर जवाब नहीं आता, तो आरोपों को स्वीकार कर लिया जाएगा और प्रत्येक उत्तरदाता पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया जाएगा। यह आदेश 25 मार्च को हुई सुनवाई के दौरान पारित किया गया।
यह याचिका भोपाल के अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश चौकसे द्वारा दायर की गई थी। याचिका में एम्स की एक तीन सदस्यीय आंतरिक समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि इन 14 प्रोफेसरों की नियुक्तियाँ अयोग्य और नियमों के विपरीत थीं।

चौकसे ने पीटीआई से बातचीत में बताया कि उन्होंने पहली बार यह मामला 2019 में हाईकोर्ट में उठाया था। उन्होंने एम्स दिल्ली और अन्य उच्च अधिकारियों को भी कई बार शिकायतें भेजीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
चौकसे ने यह भी बताया कि जनवरी 2024 में अंतिम नोटिस जारी होने के बावजूद एम्स भोपाल ने अब तक इस याचिका पर कोई ठोस जवाब दाखिल नहीं किया है, और बार-बार सुनवाई को टालने का प्रयास कर रहा है।