एक ऐतिहासिक फैसले में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि किसी महिला को किसी रिश्तेदार को अंग दान करने के लिए अपने पति की सहमति की आवश्यकता नहीं है। यह फैसला तब आया जब एक महिला ने अपने भाई को अपनी किडनी दान करने की मांग की, लेकिन शुरुआत में अस्पताल प्रशासन ने उसके पति से सहमति पत्र मांगने पर रोक लगा दी।
45 वर्षीय अनु वंशकार नामक महिला ने अपने पति अशोक वंशकार की सहमति प्राप्त करने के अस्पताल के आग्रह को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसके परिवार की मंजूरी और डॉक्टरों द्वारा दी गई चिकित्सा मंजूरी के बावजूद कि वह दान करने के लिए फिट थी, उसके पति के इनकार ने प्रक्रिया को रोक दिया था, जिससे उसके भाई की जान जोखिम में पड़ गई थी।
न्यायमूर्ति विनय सराफ की पीठ ने कहा कि 1994 का मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम अंग दान के लिए पति-पत्नी की सहमति को अनिवार्य नहीं करता है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी आवश्यकता अनावश्यक और भेदभावपूर्ण दोनों थी।
अदालत ने भोपाल के अस्पताल और संबंधित जिला और राज्य प्राधिकरण समितियों को अनु वंशकार की किडनी दान प्रक्रिया को उनके पति के सहमति पत्र के बिना आगे बढ़ाने का निर्देश दिया। इस फैसले को अंग दान में व्यक्तिगत अधिकारों और चिकित्सा नैतिकता का सम्मान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में सराहा गया है।