लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 नगर पालिका अधिनियम के तहत चुनाव याचिकाओं पर लागू नहीं; इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देरी माफी का आदेश रद्द किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने स्पष्ट किया है कि उत्तर प्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1916 की धारा 20 के तहत दायर चुनाव याचिका में देरी को माफ करने के लिए परिसीमा अधिनियम (Limitation Act), 1963 की धारा 5 का सहारा नहीं लिया जा सकता। कोर्ट ने निर्धारित किया कि नगरपालिका अधिनियम एक विशेष कानून है, जो विशेष रूप से परिसीमा अधिनियम की धारा 12(2) के आवेदन का प्रावधान करता है, जिसका अर्थ है कि धारा 5 के तहत विलंब माफी (condonation of delay) के प्रावधान इसमें लागू नहीं होंगे।

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने नगर पंचायत अशरफपुर किछौछा के निर्वाचित अध्यक्ष ओंकार गुप्ता द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने अतिरिक्त जिला जज (Additional District Judge) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत चुनाव याचिका दाखिल करने में हुई देरी को माफ कर दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने अध्यक्ष को पद से हटाने वाले अंतिम निर्णय को भी निरस्त कर दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ओंकार गुप्ता को 13 मई, 2023 को घोषित चुनाव परिणामों में नगर पंचायत अशरफपुर किछौछा के अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित घोषित किया गया था। चुनाव में चौथे स्थान पर रहे विपक्षी संख्या 4 ने परिणाम से असंतुष्ट होकर 18 जुलाई, 2023 को चुनाव याचिका दायर की।

उत्तर प्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1916 की धारा 20 के अनुसार, चुनाव परिणाम की घोषणा के 30 दिनों के भीतर चुनाव याचिका प्रस्तुत की जानी चाहिए। हालांकि, यह याचिका निर्धारित अवधि के बाद दायर की गई थी। 22 सितंबर, 2025 को चुनाव याचिकाकर्ता ने परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत एक आवेदन दायर कर 17 दिनों की देरी को माफ करने का अनुरोध किया। इसमें अदालती छुट्टियों और जानकारी देर से मिलने का हवाला दिया गया था।

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अम्बेडकर नगर के अतिरिक्त जिला जज (F.T.C.-I) ने 4 नवंबर, 2025 को धारा 5 के आवेदन को स्वीकार करते हुए देरी को माफ कर दिया था। निचली अदालत का मानना था कि देरी जानबूझकर नहीं की गई थी और वादों के गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने के लिए उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। इसके बाद, 15 नवंबर, 2025 को निचली अदालत ने मुख्य चुनाव याचिका को भी स्वीकार कर लिया था, जिसे याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता का तर्क: याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जे.एन. माथुर ने तर्क दिया कि नगरपालिका अधिनियम की धारा 20 के तहत दायर चुनाव याचिका पर परिसीमा अधिनियम की धारा 5 लागू नहीं होती है। उन्होंने के.वी. राव बनाम बी.एन. रेड्डी और हुकुमदेव नारायण यादव बनाम ललित नारायण मिश्र सहित कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि चुनाव कानून अपने आप में एक पूर्ण संहिता (self-contained code) है और इसमें परिसीमा अधिनियम के सामान्य प्रावधान लागू नहीं होते।

विपक्षियों का तर्क: विपक्षी संख्या 4 की ओर से पेश हुए डॉ. एल.पी. मिश्रा ने तर्क दिया कि चुनाव याचिका पर निर्णय लेते समय जिला जज एक ‘न्यायाधिकरण’ (Tribunal) या ‘नामित व्यक्ति’ (persona designata) के रूप में नहीं, बल्कि एक ‘न्यायालय’ (Court) के रूप में कार्य करते हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि चूंकि नगरपालिका अधिनियम एक विशेष कानून है जो अलग परिसीमा अवधि प्रदान करता है, इसलिए परिसीमा अधिनियम की धारा 29(2) के तहत धारा 4 से 24 के प्रावधान लागू होने चाहिए, क्योंकि उन्हें स्पष्ट रूप से बाहर नहीं रखा गया है।

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कोर्ट का विश्लेषण

हाईकोर्ट ने इस मामले में मुख्य रूप से दो कानूनी प्रश्नों पर विचार किया:

  1. क्या चुनाव याचिका पर निर्णय लेते समय जिला जज एक ‘कोर्ट’ के रूप में कार्य करते हैं या ‘नामित व्यक्ति’ के रूप में?
  2. क्या यू.पी. नगरपालिका अधिनियम के तहत चुनाव याचिकाओं पर परिसीमा अधिनियम की धारा 5 लागू होती है?

जिला जज ‘कोर्ट’ के रूप में कार्य करते हैं हाईकोर्ट ने माना कि 1982 के संशोधन के बाद नगरपालिका अधिनियम में ‘कोर्ट’ शब्द को ‘जिला जज’ से प्रतिस्थापित किया गया था। कोर्ट ने मुकरी गोपालन और एलआईसी बनाम नंदिनी जे. शाह के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के सिद्धांतों पर भरोसा जताते हुए निष्कर्ष निकाला कि चुनाव याचिका का निर्णय करते समय जिला जज एक ‘कोर्ट’ के रूप में ही कार्य करते हैं।

परिसीमा अधिनियम की धारा 5 लागू नहीं हालांकि, जिला जज को कोर्ट मानने के बावजूद, हाईकोर्ट ने धारा 5 की प्रयोज्यता को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति विद्यार्थी ने कहा कि नगरपालिका अधिनियम की धारा 23 में प्रक्रिया के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) का पालन करने की बात कही गई है, लेकिन इसमें एक विशिष्ट प्रावधान (proviso) भी है।

कोर्ट ने कहा:

“नगरपालिका अधिनियम की धारा 23 का परंतु (Proviso) विशेष रूप से यह प्रावधान करता है कि परिसीमा की अवधि की गणना में परिसीमा अधिनियम की धारा 12 की उप-धारा (2) लागू होगी।”

कोर्ट का तर्क था कि जब विधायिका ने विशेष रूप से परिसीमा अधिनियम के केवल एक प्रावधान (धारा 12(2)) को शामिल किया है, तो इसका अर्थ है कि अन्य प्रावधानों (जैसे धारा 5) को जानबूझकर बाहर रखा गया है।

कोर्ट ने हुकुमदेव नारायण यादव मामले का संदर्भ देते हुए कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act) के तहत भी धारा 5 लागू नहीं होती है, और वही सिद्धांत नगरपालिका अधिनियम पर भी लागू होगा। इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि हालांकि चुनाव याचिका एक वाद (Suit) नहीं है, लेकिन यह एक मूल कार्यवाही है जिसे वाद की तरह तय किया जाता है, और परिसीमा अधिनियम की धारा 5 वादों (Suits) पर लागू नहीं होती है।

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फैसला

हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए अतिरिक्त जिला जज, अम्बेडकर नगर द्वारा पारित 4 नवंबर, 2025 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें देरी माफ की गई थी।

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने अपने निर्णय में कहा:

“15.11.2025 का निर्णय और आदेश, जिसके द्वारा चुनाव याचिका स्वीकार की गई थी, कानूनन अस्थिर है क्योंकि यह परिसीमा अवधि (limitation period) से बाधित था; चुनाव याचिका खारिज किए जाने योग्य थी।”

नतीजतन, चुनाव याचिका को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि चुनाव याचिका स्वीकार होने के बाद जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्रशासक नियुक्त करने का जो आदेश जारी किया गया था, वह चुनाव याचिका खारिज होने के साथ ही स्वतः निष्प्रभावी हो जाएगा और याचिकाकर्ता (ओंकार गुप्ता) नगर पंचायत के अध्यक्ष के रूप में बने रहने के हकदार होंगे।

केस का विवरण:

  • केस का शीर्षक: ओंकार गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
  • रिट याचिका संख्या: Writ-C No. 11631 of 2025
  • कोरम: न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी
  • याचिकाकर्ता के वकील: श्री जे.एन. माथुर (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री मुदित अग्रवाल
  • प्रतिवादियों के वकील: सी.एस.सी., श्री राहुल शुक्ला (अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता), डॉ. एल.पी. मिश्रा, श्री सैयद आफताब अहमद, श्री आयुष चौधरी

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