कानूनी विवाह धार्मिक रीति-रिवाजों के बिना भी सेक्स के लिए सहमति को वैध बनाता है: बॉम्बे हाई कोर्ट ने बलात्कार के मामले को खारिज किया

बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने पुश्‍कर वैगणकर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया, जिसमें उनके ऊपर भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(n), 417 और 506 के तहत बलात्कार और आपराधिक धमकी के आरोप लगाए गए थे। कोर्ट ने यह माना कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच शारीरिक संबंध एक वैध कानूनी विवाह के दायरे में थे, जो विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत संपन्न हुआ था, भले ही उसमें धार्मिक रीतियों का पालन नहीं किया गया हो।

पृष्ठभूमि:

शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 3), जो एक 30 वर्षीय महिला हैं, ने एफआईआर दर्ज करवाई थी कि याचिकाकर्ता ने उनसे शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए और बाद में शादी से इनकार कर दिया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने उनकी निजी वीडियो लीक करने की धमकी दी थी। इन आरोपों के आधार पर पणजी पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 376(2)(n), 417 और 506 के तहत मामला दर्ज किया।

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर एफआईआर को रद्द करने की मांग की और कहा कि शिकायतकर्ता उनकी विधिवत पत्नी हैं और उनके बीच का संबंध दोनों की सहमति से वैवाहिक दायरे में रहा है।

पक्षकारों की दलीलें:

याचिकाकर्ता के वकील (श्री विभव आमोनकर):
यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता ने 11 दिसंबर 2023 को पणजी, गोवा में तिसवाड़ी के उप-पंजीयक के समक्ष विशेष विवाह अधिनियम के तहत कानूनी रूप से विवाह किया था। विवाह प्रमाणपत्र की प्रमाणित प्रति रिकॉर्ड पर प्रस्तुत की गई। याचिकाकर्ता ने धमकी या जबरदस्ती के आरोपों से इनकार किया और यह स्पष्ट किया कि कोई धोखा नहीं दिया गया।

प्रतिवादी संख्या 3 के वकील (श्री शिरिन वी. नाइक):
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने झूठे शादी के वादे पर उनका यौन शोषण किया और बाद में धर्म के अंतर के कारण शादी को नकार दिया। यह भी कहा गया कि हालांकि विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह पंजीकरण हुआ था, लेकिन याचिकाकर्ता ने धार्मिक रीतियां निभाने से इनकार कर दिया, जिससे वादा टूट गया।

राज्य की ओर से (श्री सोमनाथ कारपे, सहायक लोक अभियोजक):
राज्य ने एफआईआर में किए गए आरोपों के आधार पर जांच जारी रखने का समर्थन किया।

READ ALSO  हाईकोर्ट ने विकलांग व्यक्तियों के लिए अभिभावक की नियुक्ति पर कानून की वैधता को बरकरार रखा है

न्यायालय का विश्लेषण:

न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति निवेदिता पी. मेहता की पीठ ने देखा कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाह होने में कोई विवाद नहीं है। कोर्ट ने कहा:

“जैसे ही विवाह उक्त अधिनियम के प्रावधानों के तहत संपन्न हो जाता है, किसी भी व्यक्तिगत कानून या परंपरागत रीतियों की पति-पत्नी के संबंध को मान्यता देने में कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाती।”

कोर्ट ने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य [(2019) 9 SCC 608] के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया और दोहराया कि “झूठा विवाह का वादा” ऐसा होना चाहिए जो कभी पूरा करने की मंशा से किया ही न गया हो। इस मामले में ऐसा कोई तथ्य मौजूद नहीं था।

जहां तक आपराधिक धमकी के आरोपों की बात है, कोर्ट ने उन्हें अस्पष्ट और अस्थिर माना। कोर्ट ने यह भी कहा:

“सामान्य आरोपों के अलावा, शिकायत में किसी विशिष्ट तारीख या घटना का उल्लेख नहीं है जो कि धमकी की श्रेणी में आ सके।”

कोर्ट ने आगे कहा:

READ ALSO  दिल्ली शराब नीति मामले में कोर्ट ने मनीष सिसौदिया की हिरासत 18 अप्रैल तक बढ़ा दी

“याचिकाकर्ता और प्रतिवादी संख्या 3 के बीच वैध रूप से पंजीकृत विवाह की पृष्ठभूमि में, उनके शारीरिक संबंधों को बलात्कार नहीं कहा जा सकता।”

निर्णय:

कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए एफआईआर और उस पर आधारित सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा:

“मामले की विशेष परिस्थितियों में, आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 226 और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हमारे क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर इसे रद्द किया जाना उचित है।”

अतः याचिका स्वीकार कर ली गई और पणजी पुलिस थाने में दर्ज एफआईआर संख्या 06/2024 को रद्द कर दिया गया।

मामला शीर्षक: पुश्‍कर वैगणकर बनाम गोवा राज्य
मामला संख्या: क्रिमिनल रिट याचिका संख्या 999 ऑफ 2024(F)

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles