सुप्रीम कोर्ट ने वकील की 7 साल की निलंबन सजा को बरकरार रखा, कहा – वकीलों को अनुशासित रहना चाहिए ताकि पेशे की छवि खराब न हो

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक वकील की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने भारतीय बार काउंसिल (BCI) द्वारा उस पर लगाए गए सात साल के पेशेवर निलंबन को चुनौती दी थी। यह कार्रवाई उस समय की गई थी जब वकील ने शिकायतकर्ता के मदुरै स्थित होटल में अपनी कार जानबूझकर घुसा दी थी।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस अपील को खारिज करते हुए बीसीआई के निर्णय को सही ठहराया। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, “अपने आचरण को देखिए। एक वकील होते हुए आपने शिकायतकर्ता के होटल में कार घुसेड़ दी। वकीलों को अनुशासित होना चाहिए और पूरे पेशे की छवि को खराब नहीं करना चाहिए।”

पृष्ठभूमि

बीसीआई ने पहले वकील को अनुशासनहीनता के लिए एक वर्ष के लिए निलंबित किया था। शिकायतकर्ता ने इस सजा को बहुत हल्का मानते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन शीर्ष अदालत ने उस अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।

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बाद में शिकायतकर्ता ने बीसीआई के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर की। इस पर बीसीआई ने पुनर्विचार करते हुए वकील के निलंबन की अवधि एक साल से बढ़ाकर सात साल कर दी।

सुप्रीम कोर्ट में पक्षकारों की दलीलें

वकील की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अभिनव अग्रवाल ने तर्क दिया कि एक बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिकायतकर्ता की अपील खारिज हो जाने के बाद बीसीआई को पुनर्विचार का अधिकार नहीं था। उन्होंने अदालत के पहले के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि एक साल की सजा अंतिम रूप से तय हो चुकी थी।

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हालांकि, पीठ ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि वकील ने एक साल की निलंबन अवधि के दौरान ही एक वकालतनामा दायर कर दिया था, जो अनुशासनहीनता का गंभीर उल्लंघन था।

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने वकील की अपील को खारिज करते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निलंबन की अवधि सात साल करने के फैसले को सही ठहराया और कहा कि विधिक पेशे में अनुशासन सर्वोपरि है।

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