वैध अभिभावक द्वारा बच्चे को दूसरे अभिभावक से ले जाना अपहरण नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि एक जैविक अभिभावक, जो वैध अभिभावक के रूप में कार्य कर रहा है, यदि अपने बच्चे को दूसरे अभिभावक की कस्टडी से लेता है, तो उसे अपहरण का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह फैसला न्यायमूर्ति जुव्वादी श्रीदेवी ने 8 जनवरी, 2025 को सुनाया, जिसमें यह कहा गया कि ऐसे कार्य वैध अभिभावकता के दायरे में आते हैं और इन्हें आपराधिक अपराध नहीं माना जा सकता।

मामले का विवरण

यह मामला, सीआरएलपी नंबर 16187/2024, धारा 137(2) भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत दर्ज आरोपों से संबंधित था। अदालत ने पंंजागुट्टा पुलिस स्टेशन, हैदराबाद में दर्ज एफआईआर नंबर 1236/2024 में सभी कार्यवाहियों पर 13 फरवरी, 2025 तक रोक लगा दी। यह एफआईआर याचिकाकर्ता, जो बच्चे की जैविक मां हैं, के खिलाफ दर्ज की गई थी।

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मामले की पृष्ठभूमि

विवाद तब उत्पन्न हुआ जब याचिकाकर्ता, जो बच्चे की जैविक मां और वैध अभिभावक हैं, ने अपने नाबालिग बच्चे को पिता की कस्टडी से ले लिया। पिता, जो इस मामले में वास्तविक शिकायतकर्ता हैं, ने कस्टडी समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए आपराधिक शिकायत दर्ज करवाई।

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याचिकाकर्ता के वकील, श्री वाई. सोम श्रीनाथ रेड्डी ने तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल का कार्य मातृत्व भावनाओं और बच्चे की भलाई से प्रेरित था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि एक प्राकृतिक अभिभावक के रूप में उनका कार्य वैध था और इसे भारतीय न्याय संहिता के तहत आपराधिक अपराध नहीं माना जा सकता। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि कस्टडी आदेश के कथित उल्लंघन का समाधान परिवार न्यायालयों के माध्यम से होना चाहिए, न कि आपराधिक शिकायतों के माध्यम से।

राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक श्री जितेन्द्र राव वीरमल्ला ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मां के कार्य कस्टडी व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं और इसके लिए आपराधिक कार्यवाही आवश्यक है।

विधिक प्रश्न

इस मामले ने निम्नलिखित कानूनी प्रश्न उठाए:

1. अभिभावकता के कार्यों के आपराधिक प्रभाव: क्या एक जैविक अभिभावक, जो वैध अभिभावक भी है, को अपने बच्चे की कस्टडी लेने के लिए आपराधिक अपराध के लिए आरोपित किया जा सकता है?

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2. परिवार न्यायालयों का अधिकारक्षेत्र: क्या कस्टडी समझौतों से उत्पन्न विवादों को आपराधिक शिकायतों के बजाय परिवार न्यायालयों के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिए?

3. वैध अभिभावकता की भूमिका: कस्टडी विवादों के संदर्भ में कानून प्राकृतिक अभिभावक के कार्यों की व्याख्या कैसे करता है?

अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति जुव्वादी श्रीदेवी ने मामले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

1. पारिवारिक अधिकार और वैध अभिभावकता: अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता, जो जैविक मां और वैध अभिभावक हैं, को अपने बच्चे की कस्टडी लेने के लिए आपराधिक अपराध का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। एक वैध अभिभावक से दूसरे वैध अभिभावक को बच्चे का ले जाना अपहरण या आपराधिक अपराध नहीं है।

2. बॉम्बे हाईकोर्ट का उदाहरण: अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले (आपराधिक आवेदन संख्या 552/2023) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि वैध अभिभावक (माता या पिता) द्वारा किए गए कार्य, जब अभिभावकता के दायरे में आते हैं, तो उन्हें आपराधिक अपराध नहीं माना जा सकता।

3. उपयुक्त मंच: अदालत ने जोर देकर कहा कि कस्टडी और अभिभावकता से संबंधित विवादों को परिवार न्यायालयों में सुलझाया जाना चाहिए, न कि उन्हें आपराधिक कार्यवाही के रूप में बढ़ाया जाना चाहिए।

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4. बच्चे का सर्वोत्तम हित: न्यायमूर्ति श्रीदेवी ने कहा कि कस्टडी और अभिभावकता से संबंधित निर्णयों में बच्चे के कल्याण और सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

अदालत का निर्णय

अदालत ने याचिकाकर्ता के कार्यों को वैध और अभिभावक के अधिकारों के दायरे में पाया। एफआईआर पर आगे की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता को 13 फरवरी, 2025 तक अंतरिम राहत दी। न्यायमूर्ति श्रीदेवी ने दोहराया कि ऐसी कस्टडी संबंधी समस्याएं आपराधिक कानून के दायरे से बाहर हैं और इन्हें उपयुक्त सिविल मंचों में सुलझाया जाना चाहिए।

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