एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, कर्नाटक के शीर्ष नौकरशाहों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसमें उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा उनके खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही को रोकने की मांग की है। यह कार्यवाही 2017 के एक फैसले से जुड़ी है, जिसमें बेंगलुरु के बाहरी इलाके में स्थित जमनालाल बजाज सेवा ट्रस्ट को 350 एकड़ से अधिक भूमि लौटाने का आदेश दिया गया था।
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वरले की पीठ ने कर्नाटक के प्रमुख सचिव मंजूनाथ प्रसाद और आठ अन्य अधिकारियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ट्रस्ट को नोटिस जारी किया। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अधिकारियों की ओर से प्रस्तुत होते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा अनुपालन हलफनामा दाखिल करने के बावजूद अधिकारी अवमानना के दायरे में लाए जा रहे हैं।
विवादित भूमि को पहले कर्नाटक भूमि सुधार अधिनियम, 1961 के तहत “अधिशेष” मानते हुए राज्य की भूमि प्राधिकरण ने अपने कब्जे में ले लिया था। लेकिन हाईकोर्ट ने भूमि अधिकरण के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें 354 एकड़ और 10 गुंटा भूमि को अधिशेष घोषित किया गया था, और ट्रस्ट को भूमि का स्वामित्व बहाल कर दिया।

सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी, “ये राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारी हैं। हमने अनुपालन का हलफनामा दाखिल किया है। अगर अवमानना की कार्यवाही चली तो इनकी प्रतिष्ठा का क्या होगा?” उन्होंने हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार कर रहा है, तब तक अवमानना की सुनवाई टाल दी जाए।
1942 में स्थापित यह ट्रस्ट गांधीवादी सिद्धांतों के अनुरूप विश्वनीडम अंतरराष्ट्रीय सर्वोदय केंद्र का संचालन करता है, जो ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और गांधीवादी अध्ययन जैसे कई कल्याणकारी कार्यों में संलग्न है। हालांकि 1974 में भूमि सुधार अधिनियम में संशोधन के बाद चैरिटेबल संस्थानों पर भी भूमि सीमा लागू कर दी गई थी, ट्रस्ट ने समय रहते अपनी भूमि भूमि अधिकरण के समक्ष घोषित कर दी थी।
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि ट्रस्ट की भूमि कृषि भूमि की श्रेणी में नहीं आती और इसलिए उस पर अधिनियम की अधिशेष भूमि सीमा लागू नहीं होती। साथ ही, अदालत ने गांधी और आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित ट्रस्ट की ऐतिहासिक भूमिका और गांधीवादी मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की है। भूमि के इस महत्वपूर्ण विवाद पर कानूनी संघर्ष फिलहाल जारी है।