मध्यस्थता व्यवस्था में अब भी प्रक्रियात्मक खामियां, सुप्रीम कोर्ट ने विधि मंत्रालय से विचार करने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक फैसले में भारत की मध्यस्थता व्यवस्था में लंबे समय से जारी प्रक्रियात्मक खामियों पर चिंता जताते हुए कहा कि वर्षों से किए गए विधायी संशोधनों के बावजूद आवश्यक सुधार नहीं हो पाए हैं। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने मध्यस्थता और सुलह विधेयक, 2024 पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इसमें भी मौजूदा समस्याओं का समाधान नहीं किया गया है।

पीठ ने कहा, “यह अत्यंत खेदजनक है कि इतने वर्षों बाद भी, भारत की मध्यस्थता व्यवस्था प्रक्रियात्मक जटिलताओं से जूझ रही है।” अदालत ने विशेष रूप से ‘पक्षकारों को शामिल करने’ (impleadment) की प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए कहा कि इस विषय में न तो 1996 के कानून में स्पष्टता है और न ही प्रस्तावित विधेयक में।

READ ALSO  जजों से मिलते समय उन्हें शॉल और अन्य उपहार न दें: मद्रास HC ने न्यायिक अधिकारियों के लिए परिपत्र जारी किया

न्यायालय ने कहा कि “जो बात 1996 के अधिनियम में नहीं थी, वह आज भी 2024 के विधेयक में नहीं जोड़ी गई है, जबकि सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने इस विषय पर बार-बार मार्गदर्शन दिया है। ऐसी स्थिति में भ्रम की संभावनाएं बनी रहती हैं।”

यह टिप्पणियां उस अपील को खारिज करते हुए दी गईं, जो दिल्ली हाई कोर्ट  के जुलाई 2024 के फैसले के खिलाफ दाखिल की गई थी। उस फैसले में हाईकोर्ट ने एक मध्यस्थता न्यायाधिकरण के उस आदेश को सही ठहराया था, जिसमें एक ऐसी कंपनी को, जो मध्यस्थता समझौते की हस्ताक्षरकर्ता नहीं थी, पक्षकार बनाने की याचिका खारिज कर दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट  के आदेश में कोई त्रुटि नहीं है। साथ ही कहा कि अन्य सभी कानूनी मुद्दे संबंधित पक्ष मध्यस्थता न्यायाधिकरण के समक्ष उठा सकते हैं।

READ ALSO  महिला न्यायिक अधिकारी को धमकाने के लिए हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की

न्यायालय ने कहा कि “भारत में लागू मध्यस्थता व्यवस्था की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक है कि विधि और न्याय मंत्रालय के विधि कार्य विभाग द्वारा इसे गंभीरता से परखा जाए और विचार किया जाए कि प्रस्तावित विधेयक में आवश्यक प्रावधान जोड़े जाएं।”

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि उसके इस फैसले की प्रति देश के सभी उच्च न्यायालयों और विधि एवं न्याय मंत्रालय के प्रमुख सचिव को भेजी जाए।

READ ALSO  बॉम्बे हाई कोर्ट ने जासूसी मामले में ब्रह्मोस के पूर्व इंजीनियर को जमानत देने से किया इनकार
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles