सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधनों की संवैधानिक वैधता को लेकर अहम सुनवाई की, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार से तीखे सवाल पूछे। लगभग 70 मिनट तक चली इस सुनवाई के दौरान यह संकेत मिला कि कोर्ट जल्द ही संशोधित कानून की कुछ धाराओं पर अंतरिम आदेश जारी कर सकता है। हालांकि समय की कमी और मुद्दों की जटिलता के कारण बुधवार को कोई अंतरिम राहत नहीं दी गई, और मामले की सुनवाई आज (गुरुवार) के लिए स्थगित कर दी गई।
बुधवार को क्या उम्मीद की जा रही थी?
सुप्रीम कोर्ट से यह अपेक्षा की जा रही थी कि वह संशोधित वक्फ कानून के तीन विवादित प्रावधानों पर अंतरिम आदेश जारी करेगा:
- ‘वक्फ बाय यूजर’ के तहत घोषित संपत्तियों को डिनोटिफाई करना
- वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति
- वक्फ संपत्ति विवादों में जिलाधिकारी को दी गई शक्तियां
हालांकि किसी भी आदेश से पहले केंद्र सरकार ने अपील की कि उसे पूरा पक्ष रखने का अवसर दिया जाए। कोर्ट ने समय की सीमा को देखते हुए आदेश पारित नहीं किया और सुनवाई को अगली तारीख के लिए टाल दिया।
सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ?
संशोधित वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह कानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है और संपत्ति मालिकों पर अनुचित बोझ डालता है, विशेष रूप से ‘वक्फ बाय यूजर’ के प्रावधान को हटाने से। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा:
“यह इतना सरल नहीं है। वक्फ एक प्राचीन अवधारणा है। अगर आप अब यह कहें कि 300 वर्षों से धार्मिक कार्य के लिए इस्तेमाल हो रही संपत्ति के लिए रजिस्टर्ड डीड चाहिए, तो यह मुश्किल है।”
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने भी इस चिंता को दोहराते हुए सवाल किया:
“‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को क्यों हटाया गया? कई मस्जिदें 14वीं और 16वीं शताब्दी की हैं। ऐसी कई धार्मिक संपत्तियों के पास कोई रजिस्टर्ड बिक्री दस्तावेज नहीं होगा। वर्तमान कानून के तहत इनका क्या होगा?”
कोर्ट ने आगाह किया कि इस तरह के संरक्षणों को हटाने से लंबे समय तक मुकदमेबाज़ी और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है:
“हम समझते हैं कि पहले के कानून का दुरुपयोग भी हुआ है, लेकिन कुछ वाकई के वक्फ संपत्तियां हैं। अगर वे भी संशोधन के चलते खारिज हो गईं तो यह गंभीर जटिलताएं पैदा करेगा।”
केंद्र सरकार की ओर से क्या जवाब दिया गया?
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी:
- जो संपत्तियां पहले से वक्फ के रूप में रजिस्टर्ड हैं, वे बनी रहेंगी।
- वक्फ अधिनियम 1923, 1954, 1995 और 2013 के संशोधनों में पंजीकरण हमेशा से अनिवार्य रहा है।
- किसी भी व्यक्ति को वक्फ के रूप में संपत्ति रजिस्टर कराने से रोका नहीं गया है।
कोर्ट द्वारा पूछे गए विशिष्ट सवालों पर उन्होंने कहा:
- अनरजिस्टर्ड ‘यूजर-बेस्ड’ वक्फ संपत्तियों पर: कलेक्टर जांच करेगा, और अगर वह सरकारी जमीन पाई गई तो उसे राजस्व रिकॉर्ड में ठीक किया जाएगा।
- विवादों की स्थिति में: कलेक्टर के निर्णय से असंतुष्ट पक्ष वक्फ ट्रिब्यूनल में अपील कर सकता है।
- ब्रिटिश काल से पहले की बिना रजिस्ट्री वाली संपत्तियों पर: कोर्ट ने पूछा कि ऐसी संपत्तियों की पहचान कैसे होगी?
आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट में आज इस मामले की सुनवाई जारी रहेगी। कोर्ट ने ‘वक्फ बाय यूजर’ क्लॉज को हटाए जाने और जिलाधिकारियों को दी गई अतिरिक्त शक्तियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इससे संकेत मिलता है कि कोर्ट इस संशोधित कानून के क्रियान्वयन पर या तो रोक लगा सकता है या कुछ शर्तों के साथ इसे लागू करने की अनुमति दे सकता है।
देश भर के कानूनी विशेषज्ञ, राज्य सरकारें और धार्मिक न्यास अब सुप्रीम कोर्ट के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं – क्या कोर्ट इस कानून के अमल पर रोक लगाएगा या केंद्र को कुछ राहत देते हुए निर्देश जारी करेगा।