केरल में दो प्रमुख तकनीकी विश्वविद्यालयों के कुलपति (वाइस चांसलर) की नियुक्ति को लेकर चला आ रहा विवाद अब समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट को गुरुवार को बताया गया कि केरल के राज्यपाल और राज्य सरकार ने एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और केरल यूनिवर्सिटी ऑफ डिजिटल साइंसेज के लिए कुलपतियों के नामों पर सहमति बना ली है।
न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ को अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने सूचित किया कि यह सहमति पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता वाली समिति को भी अवगत करा दी गई है। राज्यपाल की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि मामला अब पूरी तरह सुलझ चुका है।
पीठ ने इस प्रगति का स्वागत करते हुए कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय का संचालन बिना कुलपति के संभव नहीं है, क्योंकि प्रशासनिक और अकादमिक निर्णयों में उनकी भूमिका बेहद अहम होती है। अदालत ने यह भी याद दिलाया कि दोनों विश्वविद्यालय लंबे समय तक स्थायी कुलपति के बिना चल रहे थे, जिसका मुख्य कारण राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच सहमति का अभाव था।
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला दर्शाता है कि समय पर और निर्णायक हस्तक्षेप से नागरिकों और संस्थानों के हितों की रक्षा की जा सकती है। अदालत ने कहा कि जब दो प्रमुख विश्वविद्यालय ‘बिना शासक’ के रह गए थे, तब न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा और वह स्थिति को लेकर गंभीर रूप से चिंतित था।
पीठ ने यह भी दर्ज किया कि न्यायमूर्ति धूलिया को समिति का प्रमुख बनाकर कम से कम तीन नाम सुझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और अब यह देखकर संतोष है कि चांसलर और राज्य सरकार ने एक स्वर में कुलपति नियुक्ति की जानकारी दी है। अदालत ने इस पूरी प्रक्रिया में न्यायमूर्ति धूलिया की भूमिका की सराहना की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका प्रयास शुरू से यही रहा है कि सभी हितधारकों के हित सुरक्षित रहें। अदालत ने उन सभी अधिकारियों और वकीलों की भी सराहना की, जिन्होंने न्यायालय के निर्देशों के पालन में सहयोग किया। पीठ ने कहा कि यह विवाद अब सम्मानजनक ढंग से समाप्त हो गया है और इसका सुखद अंत हुआ है।
गौरतलब है कि केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और राज्यपाल सह चांसलर राजेंद्र अर्लेकर के बीच कुलपति नियुक्ति को लेकर लंबे समय से टकराव चल रहा था। 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इसी गतिरोध को देखते हुए न्यायमूर्ति धूलिया की अध्यक्षता में समिति गठित कर प्रत्येक विश्वविद्यालय के लिए एक-एक नाम सुझाने को कहा था।
इससे पहले, 28 नवंबर को अदालत ने राज्यपाल द्वारा समिति की रिपोर्ट पर विचार न किए जाने पर कड़ी टिप्पणी की थी और कहा था कि यह कोई साधारण कागज नहीं है। अदालत ने यह भी संकेत दिया था कि यदि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच सहमति नहीं बनती, तो वह स्वयं हस्तक्षेप करेगी।
विवाद तब और गहरा गया था जब 2 सितंबर को राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कुलपति चयन प्रक्रिया से मुख्यमंत्री को बाहर रखने की मांग की थी। राज्यपाल का तर्क था कि दोनों विश्वविद्यालयों के अधिनियमों में मुख्यमंत्री की कोई भूमिका नहीं बताई गई है। इससे पहले, 18 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस ‘गतिरोध’ को खत्म करने के लिए न्यायमूर्ति धूलिया के नेतृत्व में एक पैनल का गठन किया था, जो उनके 9 अगस्त को सेवानिवृत्त होने के बाद किया गया कदम था।
अब राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच सहमति बनने के साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने केरल के इन दोनों विश्वविद्यालयों में लंबे समय से चली आ रही नेतृत्व की अनिश्चितता पर विराम लगा दिया है।

