महिला के शरीर पर टिप्पणी करना यौन उत्पीड़न माना जाता है: केरल हाईकोर्ट 

केरल हाईकोर्ट  ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पुष्टि की है कि किसी महिला के शरीर की संरचना पर टिप्पणी करना या यौन रूप से अनुचित टिप्पणी करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और केरल पुलिस अधिनियम (केपी अधिनियम) के तहत यौन उत्पीड़न माना जाता है। न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन द्वारा दिया गया यह निर्णय ऐसे समय में आया जब न्यायालय ने इस तरह के व्यवहार के आरोपी एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया।

यह मामला केरल राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड (केएसईबी) के एक पूर्व कर्मचारी से जुड़ा है, जिसने कथित तौर पर केएसईबी में एक वरिष्ठ सहायक, एक महिला सहकर्मी के बारे में अवांछित यौन टिप्पणी की थी। कथित तौर पर यह घटना 31 मार्च, 2017 को शुरू हुई और अगले महीनों में उसके मोबाइल फोन पर कई आपत्तिजनक संदेश भेजे गए।

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आरोपी पर यौन रूप से रंगीन टिप्पणी करने के लिए आईपीसी की धारा 354ए(1)(iv) और 509 तथा इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से उपद्रव करने के लिए केपी अधिनियम की धारा 120(o) के तहत आरोप लगाए गए थे। उसके बचाव पक्ष के वकील के इस तर्क के बावजूद कि किसी के शरीर की संरचना का उल्लेख करना यौन उत्पीड़न नहीं माना जाता है, अदालत ने पाया कि टिप्पणी स्पष्ट यौन इरादे से की गई थी, इस प्रकार यौन उत्पीड़न की कानूनी परिभाषा को संतुष्ट करती है।

न्यायमूर्ति बदरुद्दीन ने कहा, “कोई भी पुरुष जो किसी महिला पर यौन रूप से रंगीन टिप्पणी करता है, वह यौन उत्पीड़न के अपराध का दोषी है,” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की हरकतें कानून का स्पष्ट उल्लंघन हैं। उन्होंने आरोपी के आचरण की बार-बार की गई प्रकृति पर भी ध्यान दिया, जिसने मामले की गंभीरता को और बढ़ा दिया।

आपराधिक मामले को आगे बढ़ाने का अदालत का फैसला यौन उत्पीड़न को संबोधित करने और दंडित करने के लिए न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जो कार्यस्थल और उसके बाहर अवांछित यौन प्रस्तावों के खिलाफ व्यक्तियों को दी जाने वाली सुरक्षा को मजबूत करता है।

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