POCSO एक्ट के तहत पीड़िता के जननांगों के किसी भी प्रकार के संपर्क को प्रवेशात्मक यौन उत्पीड़न माना जाएगा: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के मामले में 46 वर्षीय आरोपी की सजा को बरकरार रखते हुए उसे दी गई आजीवन कारावास की सजा को संशोधित कर 25 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। जस्टिस पी.बी. सुरेश कुमार और जस्टिस जोबिन सेबेस्टियन की खंडपीठ ने कहा कि “यदि लबिया मेजोरा (बाहरी जननांग) में थोड़ी भी पैठ हो तो यह बलात्कार माना जाएगा, भले ही शिश्न का पूर्णरूपेण प्रवेश न हुआ हो।”

मामला: 4½ वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म

यह मामला कासरगोड जिले में रहने वाले आरोपी रवींद्रन वी.एस. द्वारा एक 4½ वर्षीय आदिवासी बच्ची के साथ किए गए यौन उत्पीड़न से संबंधित है। पीड़िता मराट्टी अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंधित थी और आरोपी के साथ उसी क्वार्टर में रहती थी।

आरोपी ने 31 अगस्त, 7 सितंबर और 9 सितंबर 2018 को बच्ची के साथ कई बार बलात्कार और भेदनशील यौन उत्पीड़न किया। घटना तब सामने आई जब बच्ची ने अपने जननांगों में दर्द की शिकायत अपनी मां से की, जिसने उसे बेडाकम स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जांच के लिए ले जाया। चिकित्सकीय जांच में यौन उत्पीड़न की पुष्टि हुई, जिसके बाद चाइल्डलाइन को सूचना दी गई और बेडाकम पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज हुआ (क्राइम नं. 293/2018)।

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मुकदमा और दोषसिद्धि

कासरगोड की महिला एवं बाल अपराधों की विशेष अदालत (एस.सी. नं. 747/2018) ने आरोपी को निम्नलिखित धाराओं के तहत दोषी करार दिया:

  • IPC की धारा 376AB (12 वर्ष से कम उम्र की बच्ची से बलात्कार)
  • POCSO अधिनियम की धारा 6 सहपठित धारा 5(m) (गंभीर भेदनशील यौन उत्पीड़न)
  • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 की धारा 3(2)(v), 3(1)(w)(i) और 3(2)(va)
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अदालत ने आरोपी रवींद्रन को शेष जीवनकाल के लिए आजीवन कारावास और ₹25,000 के जुर्माने की सजा सुनाई।

अपील और हाईकोर्ट का फैसला

आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल करते हुए दावा किया कि अभियोजन पक्ष केवल पीड़िता के बयान पर निर्भर था और चिकित्सा साक्ष्य में स्पष्ट रूप से पैठ (penetration) का प्रमाण नहीं था। आरोपी के वकील टी.जी. राजेंद्रन और टी.आर. टारिन ने दलील दी कि केवल लबिया मेजोरा (बाहरी जननांग) पर लालिमा होना बलात्कार साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

हाईकोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए कहा:

  1. नाबालिग पीड़िता का बयान विश्वसनीय और दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है।
  2. चिकित्सा साक्ष्य ने पीड़िता के आरोपों की पुष्टि की, जिसमें जननांग क्षेत्र में लालिमा और खरोंच देखी गई।
  3. बलात्कार के लिए शिश्न का पूर्णरूपेण प्रवेश आवश्यक नहीं है। अदालत ने Chenthamara v. State of Kerala [2008 (4) KLT 290] और Tarkeshwar Sahu v. State of Bihar [(2006) 8 SCC 560] मामलों का हवाला देते हुए कहा कि लबिया मेजोरा में थोड़ी भी पैठ बलात्कार के लिए पर्याप्त मानी जाएगी।
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अदालत की मुख्य टिप्पणी:

“यह स्पष्ट है कि बलात्कार साबित करने के लिए शिश्न का पूरी तरह से योनि में प्रवेश आवश्यक नहीं है। यदि शिश्न महिला जननांग के किसी भी बाहरी हिस्से, जैसे वल्वा (vulva) या लबिया मेजोरा (labia majora), के संपर्क में आता है, तो इसे बलात्कार माना जाएगा।”

सजा में संशोधन

हालांकि हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन आजीवन कारावास (शेष जीवनकाल तक) की सजा को घटाकर 25 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। अदालत ने कहा कि यह संशोधन न्याय के हित में होगा। ₹25,000 का जुर्माना बरकरार रखा गया और भुगतान न करने की स्थिति में 2 साल का कठोर कारावास निर्धारित किया गया।

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