केरल हाईकोर्ट ने पिता और सौतेली मां को उम्रकैद की सज़ा सुनाई; छह वर्षीय बच्ची की मौत ‘लंबे समय तक चली क्रूर यातना’ का नतीजा

केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक व्यक्ति और उसकी पत्नी को उसकी छह वर्षीय बेटी की हत्या के लिए उम्रकैद की सज़ा सुनाई, यह मानते हुए कि बच्ची की मौत “लंबे समय तक चली शारीरिक और मानसिक क्रूरता” का परिणाम थी। यह घटना वर्ष 2013 की है।

न्यायमूर्ति राजा विजयाराघवन वी और न्यायमूर्ति के. वी. जयराज की खंडपीठ ने सु्ब्रमणियन नम्बूदरी और रमला बेगम उर्फ देवकी अन्तर्जनम को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 सहपठित धारा 34 (हत्या और समान अभिप्राय) के तहत दोषी ठहराया। अदालत ने 2016 में सत्र न्यायालय द्वारा दी गई बरी करने की फैसले को पलटते हुए कहा कि उसका तर्क “स्पष्ट रूप से अवैधानिक, त्रुटिपूर्ण और आपराधिक कानून के स्थापित सिद्धांतों का गलत अनुप्रयोग” था।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पीड़िता के भाई अधिथि एस. नम्बूदरी के बयान के आधार पर अदालत ने पाया कि बच्ची की मौत “लगभग दस महीनों तक चले शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, उपेक्षा और जबरन श्रम” के कारण हुई थी। रिपोर्ट में बताया गया कि बच्ची को पेट और पीठ पर भारी आघात (blunt trauma) हुआ था, जिससे न्यूरोजेनिक शॉक हुआ—जो मृत्यु का तात्कालिक कारण था।

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पीठ ने कहा, “संपूर्ण साक्ष्य इस बात की ओर स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि दोनों आरोपियों का साझा इरादा था और उनकी योजनाबद्ध कार्रवाई ने बच्ची की मौत को अंजाम दिया।”

अदालत ने पाया कि बच्ची को भारी पिटाई, जननांगों पर उबलता पानी डालना, हड्डियों में कई फ्रैक्चर और जानबूझकर भूखा रखना जैसी यातनाएँ दी गईं। पीठ ने कहा, “इन निरंतर क्रूर कृत्यों से हुई शारीरिक और मानसिक पीड़ा के परिणामस्वरूप बच्ची को न्यूरोजेनिक शॉक हुआ, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि पीड़िता के भाई अरुण एस. नम्बूदरी की गवाही और चिकित्सीय साक्ष्य से यह स्पष्ट हुआ कि “बच्चों को जिस अमानवीय, सैडिस्टिक और राक्षसी यातना का शिकार बनाया गया, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली थी।”

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हाईकोर्ट ने सत्र न्यायाधीश की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने “अभियोजन द्वारा प्रस्तुत ठोस और विश्वसनीय साक्ष्यों को गलत पढ़ा और उनकी सराहना करने में असफल रहे।” अदालत ने कहा, “यदि हत्या के मामले में दिया गया यह बरी करने का आदेश बरकरार रखा जाता, तो यह न्याय का गंभीर उपहास होता।”

राज्य की ओर से अभियोजन ने आरोपियों को मौत की सज़ा देने की मांग की थी, परंतु अदालत ने कहा कि ऐसे किसी “विशेष कारण” का अस्तित्व नहीं है जो पूंजी दंड को उचित ठहराए। इसलिए दोनों आरोपियों को आजीवन कारावास और प्रत्येक पर ₹2 लाख का जुर्माना लगाया गया।

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हालांकि, अदालत ने दोनों की पीड़िता के भाई की हत्या के प्रयास के मामले में बरी करने का आदेश बरकरार रखा।

यह मामला, जिसने एक दशक पहले केरल को झकझोर दिया था, अब न्यायालय के इस कठोर संदेश के साथ समाप्त हुआ कि “छह वर्षीय बालिका पर लंबे समय तक चली क्रूरता और यातना को बिना दंड के नहीं छोड़ा जा सकता।”

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