केरल हाईकोर्ट ने वैवाहिक कानून में मानसिक क्रूरता की विकसित होती परिभाषा को रेखांकित करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक पत्नी को तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें महिला ने आरोप लगाया था कि उसका पति वैवाहिक अंतरंगता में कोई रुचि नहीं दिखाता और पूरी तरह से आध्यात्मिक गतिविधियों में लिप्त रहता है।
यह निर्णय 24 मार्च 2025 को न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन और न्यायमूर्ति एम.बी. स्नेहलता की खंडपीठ ने Mat. Appeal No. 1037 of 2024 में पारित किया, जो O.P. No. 224 of 2022 में मुवत्तुपुझा फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के आदेश की पुष्टि करता है।
मामले की पृष्ठभूमि
पति-पत्नी का विवाह 23 अक्टूबर 2016 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था। पत्नी, जो एक आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं, ने अदालत में निम्नलिखित आरोप लगाए:

- पति को शारीरिक संबंधों में कोई रुचि नहीं थी;
- वह संतान उत्पत्ति के इच्छुक नहीं थे;
- पूरी तरह से मंदिरों और पूजाओं जैसी आध्यात्मिक गतिविधियों में लिप्त रहते थे;
- पत्नी को अंधविश्वासों के आधार पर जीवन जीने के लिए विवश करते थे;
- पत्नी को पोस्टग्रेजुएट पढ़ाई जारी रखने की अनुमति नहीं दी;
- पत्नी के स्टाइपेंड का कथित रूप से दुरुपयोग किया गया;
- 2019 में मैसेज के जरिए तलाक की मांग की, लेकिन जब पत्नी ने तलाक का मुकदमा दायर किया तो पति ने समझौते की बात की, जिस पर भरोसा करके पत्नी ने O.P. No. 871/2019 वापस ले लिया।
हालांकि, व्यवहार में कोई सुधार न देखकर पत्नी ने 2022 में फिर से हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक की अर्जी दी।
पति की ओर से जवाब
पति ने सभी आरोपों को नकारते हुए कहा:
- वह किसी भी प्रकार के अंधविश्वास में विश्वास नहीं रखते;
- उन्होंने पत्नी की पढ़ाई में सहयोग किया और आर्थिक सहायता भी दी;
- पत्नी स्वयं M.D. पूरी करने से पहले गर्भधारण नहीं करना चाहती थीं;
- पत्नी के माता-पिता उसकी सैलरी पर नियंत्रण रखने के लिए उनके वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप कर रहे थे;
- उन्होंने कभी भी मानसिक या शारीरिक क्रूरता नहीं की।
मुख्य कानूनी प्रश्न
- क्या पति का शारीरिक संबंध बनाने से इंकार करना और संतान उत्पत्ति में अरुचि रखना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है?
- क्या किसी जीवनसाथी पर उसकी इच्छा के विरुद्ध धार्मिक या आध्यात्मिक आचरण थोपना मानसिक क्रूरता माना जा सकता है?
- क्या लगातार उपेक्षा, भावनात्मक दूरी और अंतरंगता की कमी भी तलाक के वैध आधार बन सकते हैं, भले ही कोई शारीरिक हिंसा न हुई हो?
- क्या फैमिली कोर्ट के निर्णय में अपील अदालत को हस्तक्षेप करना चाहिए?
कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
न्यायमूर्ति एम.बी. स्नेहलता ने फैसले में पत्नी (PW1) की गवाही और प्रस्तुत सबूतों का विस्तार से मूल्यांकन किया। कोर्ट ने कहा:
“पत्नी का मामला है कि पति केवल मंदिर जाना, पूजा करना आदि जैसे आध्यात्मिक कार्यों में ही रुचि रखते हैं और वैवाहिक जीवन, जिसमें शारीरिक संबंध भी शामिल हैं, में बिल्कुल भी रुचि नहीं रखते।”
कोर्ट ने पत्नी के दावे को विश्वसनीय मानते हुए इसे मानसिक क्रूरता करार दिया। पीठ ने कहा:
“शारीरिक हिंसा की तुलना में मानसिक क्रूरता को साबित करना कठिन होता है, और यह हर मामले में भिन्न होती है। निरंतर उपेक्षा, स्नेह की कमी और बिना किसी उचित कारण के वैवाहिक अधिकारों से इनकार करना गंभीर मानसिक पीड़ा देता है।”
पति द्वारा धार्मिक जीवनशैली थोपने पर कोर्ट ने कहा:
“विवाह एक साथी को दूसरे के आध्यात्मिक या व्यक्तिगत विश्वासों को नियंत्रित करने का अधिकार नहीं देता।”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले Roopa Soni v. Kamalnarayan Soni [AIR 2023 SC 4186] का हवाला देते हुए कहा कि क्रूरता की जांच के लिए लचीले और व्यावहारिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
“जो व्यवहार किसी महिला के लिए क्रूरता है, वह किसी पुरुष के लिए जरूरी नहीं कि वैसा ही हो… इसीलिए पत्नी द्वारा तलाक की मांग करने वाले मामलों में एक व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक है।”
केरल हाईकोर्ट के ही Anilkumar V.K. v. Sunila.P [2025 (2) KHC 33] फैसले का भी उल्लेख करते हुए कहा गया:
“वैवाहिक जीवन में क्रूरता की परिभाषा परिस्थितियों, आचरण और पक्षकारों के अनुभवों पर निर्भर करती है।”
कोर्ट ने पति की जिरह के दौरान मिले बयानों से निष्कर्ष निकाला कि वह लगातार मंदिर जाते थे और वैवाहिक कर्तव्यों से पूरी तरह विमुख थे। उनके संपूर्ण आचरण से यह स्पष्ट था कि उन्होंने मानसिक रूप से पत्नी से दूरी बना ली थी।
कोर्ट ने कहा कि दोनों के बीच अब कोई स्नेह, विश्वास या साथ नहीं बचा है और विवाह पूरी तरह से टूट चुका है। इसलिए फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया तलाक का आदेश सही ठहराया गया।
“हम इस निष्कर्ष को बदलने का कोई आधार नहीं देखते, क्योंकि यह तथ्यों और सबूतों के सही मूल्यांकन पर आधारित है।”
अतः अपील खारिज कर दी गई और दोनों पक्षों को अपने-अपने खर्च वहन करने को कहा गया।