एक स्त्री कितना सह सकती है, इसकी भी एक सीमा होती है” – केरल हाईकोर्ट ने पत्नी को दिए गए तलाक के फैसले को बरकरार रखा

केरल हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट, मलप्पुरम द्वारा पत्नी के पक्ष में दिए गए तलाक के फैसले के खिलाफ पति द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन और न्यायमूर्ति एम.बी. स्नेहलता की खंडपीठ ने डिवोर्स एक्ट, 1869 की धारा 10(1)(x) के तहत दिए गए तलाक के आदेश को उचित ठहराया और माना कि पति ने पत्नी के साथ गंभीर और लगातार क्रूरता का व्यवहार किया था।

पृष्ठभूमि

पति-पत्नी के बीच विवाह 29 जनवरी 2006 को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था और उनके दो बच्चे हैं। पत्नी ने फैमिली कोर्ट, मलप्पुरम में ओ.पी. संख्या 251/2021 दाखिल कर क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से बार-बार प्रताड़ित किया गया, जिसमें 3 दिसंबर 2012 को हुई एक गंभीर मारपीट की घटना भी शामिल थी, जिसमें पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा और जिसके आधार पर अपराध संख्या 179/2012 दर्ज हुई, जो बाद में सी.सी. संख्या 544/2012 के रूप में दर्ज की गई।

पत्नी ने बताया कि उन्होंने पहले की शिकायतें और तलाक याचिकाएं इसलिए वापस ले ली थीं क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि पति में सुधार होगा, लेकिन परिस्थितियाँ और अधिक बिगड़ गईं। इसके चलते उन्हें भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध संख्या 717/2020 और 259/2022 दर्ज करानी पड़ी।

पक्षकारों की दलीलें

पति ने यह दावा किया कि पहले दर्ज आपराधिक मामलों में उन्हें बरी किया जा चुका है और उन्होंने “गुस्से को नियंत्रित करने की समस्या” से पीड़ित होने का हवाला दिया। इस दावे के समर्थन में उन्होंने 7 मई 2022 की एक मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन (प्रदर्श-बी1) प्रस्तुत की। उन्होंने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को अवैध बताया और कहा कि उपलब्ध साक्ष्य कानूनी रूप से आवश्यक क्रूरता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।

वहीं पत्नी ने कहा कि उन्होंने पहले पति की हिंसात्मक प्रवृत्ति को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब उनका व्यवहार खतरनाक होता गया तो उन्हें मजबूरन तलाक की मांग करनी पड़ी। उनके वकील ने तर्क दिया कि दस्तावेज़ी साक्ष्य और खुद पति की स्वीकारोक्तियों से यह स्पष्ट रूप से साबित होता है कि पत्नी के साथ लगातार क्रूरता की गई।

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कोर्ट का विश्लेषण

हाईकोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने साक्ष्यों का विधिवत मूल्यांकन किया और पहले की शिकायतों की वापसी या खारिज हो जाने से अपीलकर्ता को कोई लाभ नहीं मिल सकता, क्योंकि ये सभी कदम पत्नी ने स्वयं पति और परिवार की रक्षा के लिए उठाए थे।

मानसिक बीमारी की दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा:

“उन्होंने कभी ‘नेक्स्ट फ्रेंड’ की मांग नहीं की, जिससे यह साफ होता है कि मानसिक बीमारी की बात अब एक हताशा में दी गई दलील है, जिससे वह अपने विरुद्ध साबित आरोपों से बचना चाहते हैं।”

कोर्ट ने पत्नी द्वारा बार-बार की गई क्षमा और सहनशीलता पर टिप्पणी करते हुए कहा:

“एक स्त्री अपने वैवाहिक जीवन और परिवार की रक्षा के लिए क्षमा करती है। यह क्षमा एक निष्क्रिय कृत्य नहीं, बल्कि एक सशक्त और रूपांतरणकारी कार्य है… लेकिन, एक स्त्री कितना सह सकती है, इसकी भी एक सीमा होती है।”

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि फैमिली कोर्ट द्वारा क्रूरता को सिद्ध मानते हुए दिया गया तलाक का आदेश पूरी तरह से साक्ष्यों पर आधारित था, जिसमें पत्नी द्वारा की गई आपराधिक शिकायतें, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत संरक्षण आदेश और चिकित्सकीय प्रमाण शामिल थे।

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निर्णय

हाईकोर्ट ने माना कि डिवोर्स एक्ट, 1869 की धारा 10(1)(x) के तहत क्रूरता का आधार स्पष्ट रूप से सिद्ध हुआ है और फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया तलाक का आदेश न्यायसंगत है। कोर्ट ने अपील खारिज कर दी और किसी भी पक्ष को लागत नहीं दी। साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि पक्षकारों की गोपनीयता बनाए रखने के लिए उनके नामों और पहचान को गुप्त रखा जाए।

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