केरल हाईकोर्ट ने क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स एक्ट को बरकरार रखा, पारदर्शिता और मरीजों के अधिकारों के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी

केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को Kerala Clinical Establishments (Registration and Regulation) Act, 2018 की वैधता को बरकरार रखते हुए राज्य के सभी निजी अस्पतालों और क्लिनिकों के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए। कोर्ट ने भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) और केरल प्राइवेट हॉस्पिटल्स एसोसिएशन की उन अपीलों को खारिज कर दिया, जिनमें एकल-न्यायाधीश द्वारा इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को ठुकराए जाने का आदेश दिया गया था।

जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और जस्टिस श्याम कुमार वी. एम. की खंडपीठ ने कहा कि यह अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है और इसे लागू हुए 7-8 वर्ष बीत जाने के बाद भी निजी क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स ने इसके प्रावधानों का पालन करने में कोई कदम नहीं उठाया। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की उदासीनता से राज्य के नागरिक अपने मूलभूत अधिकारों और अधिनियम के तहत दिए गए लाभों से वंचित हो रहे हैं।

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आपातकालीन उपचार पर अनिवार्य निर्देश

कोर्ट ने निर्देश दिया कि हर क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट को:

  • अपनी क्षमता के अनुसार आपातकालीन मरीजों की स्क्रीनिंग और स्थिरीकरण अनिवार्य रूप से करना होगा।
  • ज़रूरत पड़ने पर उच्च केंद्रों में सुरक्षित स्थानांतरण सुनिश्चित करना होगा, और इसके लिए सभी दस्तावेज और संचार उचित तरीके से किया जाए।
  • अग्रिम भुगतान न होने या दस्तावेज़ों की कमी के आधार पर प्रारंभिक जीवनरक्षक उपचार से इंकार नहीं किया जा सकता

सेवाओं और शुल्क की सार्वजनिक घोषणा अनिवार्य

हर अस्पताल/क्लीनिक को स्वागत कक्ष, एडमिशन डेस्क और अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर—मलयालम और अंग्रेज़ी में—स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना होगा:

  • उपलब्ध सेवाओं की सूची
  • सामान्य प्रक्रियाओं के बेसलाइन और पैकेज दरें
  • प्रमुख सुविधाओं की जानकारी (बेड श्रेणियाँ, ICU/OT उपलब्धता, आदि)
  • मरीजों के अधिकारों का सार, जैसे आपातकालीन देखभाल और सूचित सहमति
  • नोडल/ग्रिवांस ऑफिसर का नाम, फोन नंबर और ईमेल
  • जिला रजिस्ट्रेशन प्राधिकरण/DMO हेल्पलाइन और अन्य एस्कलेशन संपर्क
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मरीज सूचना पुस्तिका अनिवार्य

हर अस्पताल मरीजों को मलयालम और अंग्रेज़ी में पुस्तिका/लीफ़लेट उपलब्ध कराएगा, जिसमें शामिल हों:

  • सेवाओं का विवरण
  • बेसलाइन और पैकेज दरें (सहित क्या शामिल है)
  • जमा और रिफंड पॉलिसी
  • डिस्चार्ज प्रक्रिया
  • अनुमान और बिलिंग नीति
  • 24×7 आपातकालीन प्रोटोकॉल
  • शिकायत निवारण प्रक्रिया

शिकायत निवारण प्रणाली मजबूत की जाएगी

कोर्ट ने कहा:

  • प्रत्येक शिकायत को एक यूनिक रेफरेंस नंबर के साथ दर्ज किया जाए।
  • शिकायत की तुरंत पावती SMS, WhatsApp या भौतिक प्रति के रूप में दी जाए।
  • सभी शिकायतों का समाधान सात दिनों के भीतर करने का प्रयास हो।
  • अनसुलझी शिकायतों को तुरंत जिला रजिस्ट्रेशन प्राधिकरण या DMO को भेजा जाए।

उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दिशानिर्देशों का उल्लंघन होने पर अधिनियम के तहत:

  • पंजीकरण निलंबित या रद्द किया जा सकता है,
  • दंड लगाए जा सकते हैं।
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इसके अतिरिक्त मरीज अपने सिविल, क्रिमिनल या संवैधानिक उपाय भी अपना सकते हैं।

राज्य सरकार के लिए निर्देश

  • हाईकोर्ट रजिस्ट्रार को आदेश दिया गया है कि फैसले की प्रति मुख्य सचिव और राज्य पुलिस प्रमुख को भेजी जाए ताकि वे आवश्यक नोटिफिकेशन जारी करें और अनुपालन सुनिश्चित करें।
  • राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है कि इस आदेश और इसके प्रमुख दिशानिर्देशों का एक माह तक मलयालम और अंग्रेज़ी में व्यापक प्रचार किया जाए।

अंत में खंडपीठ ने कहा:
“यह निर्णय केवल कानून की घोषणा न रहे, बल्कि सम्मानजनक, नैतिक और समान चिकित्सा देखभाल के अधिकार की पुनर्पुष्टि बने।”

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