केरल हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि वेश्यालय में यौनकर्मी की सेवाएं लेने वाला व्यक्ति अनैतिक व्यापार (प्रतिषेध) अधिनियम, 1956 के तहत अभियोजन का पात्र होगा, क्योंकि पैसे का भुगतान यौनकर्मी को वेश्यावृत्ति के लिए प्रेरित करने के समान है।
न्यायमूर्ति वी.जी. अरुण ने वेश्यावृत्ति से जुड़े एक मामले में आरोपी की याचिका को आंशिक रूप से खारिज करते हुए कहा कि ऐसे व्यक्तियों को “ग्राहक” नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यौनकर्मी कोई वस्तु नहीं है जिसे खरीदा जाए।
याचिकाकर्ता पर अधिनियम की धारा 3 (वेश्यालय रखना), धारा 4 (वेश्यावृत्ति से होने वाली कमाई पर जीवनयापन), धारा 5(1)(d) (किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए प्रेरित करना) और धारा 7 (सार्वजनिक स्थानों के पास वेश्यावृत्ति) के तहत आरोप लगाए गए थे। उसका तर्क था कि वह केवल वेश्यालय का “ग्राहक” था और उस पर प्रेरित करने का आरोप नहीं लगाया जा सकता।

मामला मार्च 2021 का है, जब पुलिस ने पेरूरकाडा थाने के अंतर्गत कुडप्पनकुन्नू स्थित एक मकान पर छापा मारा और कथित तौर पर याचिकाकर्ता और एक महिला को निर्वस्त्र पाया। जांच में सामने आया कि दो अन्य आरोपियों ने तीन महिलाओं को वेश्यावृत्ति के लिए उपलब्ध कराया था और ग्राहकों की व्यवस्था कर रहे थे।
याचिकाकर्ता की दलील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा: “वेश्यालय में यौनकर्मी की सेवा लेने वाले को ग्राहक नहीं कहा जा सकता। ग्राहक वह होता है जो कोई वस्तु या सेवा खरीदता है। यौनकर्मी को वस्तु के रूप में अपमानित नहीं किया जा सकता।”
न्यायाधीश ने आगे कहा कि वेश्यालय में यौनकर्मी को दिया गया भुगतान केवल एक “प्रलोभन” माना जाएगा, जिससे उन्हें अपना शरीर उपलब्ध कराने और भुगतानकर्ता की मांग पूरी करने के लिए बाध्य किया जाता है। इसलिए, ऐसा आचरण धारा 5(1)(d) के तहत दंडनीय है।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि कानून का उद्देश्य मानव तस्करी पर रोक लगाना है, न कि उन व्यक्तियों को दंडित करना जिन्हें मजबूरन वेश्यावृत्ति में धकेला गया है।
हाईकोर्ट ने जहां धारा 3 और 4 के तहत आरोप रद्द किए, वहीं याचिकाकर्ता पर धारा 5(1)(d) और 7 के तहत अभियोजन की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी। यह निर्णय 21 जुलाई को सुनाया गया।