केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में ए.पी.जे. अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (KTU) के अस्थायी कुलपति के रूप में राज्यपाल द्वारा की गई नियुक्ति को अवैध करार दिया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय प्रशासन में नियुक्तियों के लिए राज्य सरकार की सिफारिश आवश्यक है।
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि 27 नवंबर 2024 को केरल के राज्यपाल और विश्वविद्यालय के कुलाधिपति आरिफ मोहम्मद खान द्वारा डॉ. के. शिवप्रसाद की अस्थायी कुलपति के रूप में की गई नियुक्ति विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 13(7) के प्रावधानों का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की सिफारिश के बिना कुलपति की नियुक्ति करने का अधिकार राज्यपाल को नहीं है।
यह मामला केरल सरकार द्वारा दाखिल किया गया था, जिसमें राज्यपाल के एकतरफा निर्णय को चुनौती दी गई थी। इससे पहले कुलपति डॉ. साजी गोपीनाथ ने पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद राज्यपाल ने डॉ. शिवप्रसाद को अंतरिम रूप से नियुक्त किया।

हालांकि अदालत ने नियुक्ति को गैरकानूनी घोषित किया, लेकिन डॉ. शिवप्रसाद को तत्काल पद से हटाने का आदेश नहीं दिया क्योंकि उनका कार्यकाल 27 मई 2025 को समाप्त हो रहा है। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह योग्य उम्मीदवारों की नई सूची शीघ्र राज्यपाल को भेजे ताकि स्थायी कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जा सके।
महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी नियुक्तियाँ 2018 की यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) की नियमावली के अनुसार ही की जानी चाहिए, जिससे शैक्षणिक प्रशासन में पारदर्शिता और एकरूपता सुनिश्चित हो सके।
CPI(M) ने फैसले को संघीय ढांचे की जीत बताया
राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी CPI(M) ने फैसले का स्वागत करते हुए इसे “राज्यपाल की दखलअंदाज़ी के विरुद्ध कड़ा संदेश” और “लोकतांत्रिक व संघीय सिद्धांतों की जीत” बताया। पार्टी की राज्य इकाई ने अपने बयान में कहा कि अदालत का निर्णय इस बात को पुष्ट करता है कि कुलपति—चाहे अस्थायी हों या स्थायी—की नियुक्ति केवल राज्य सरकार की सिफारिशों के आधार पर ही की जानी चाहिए।
CPI(M) ने पूर्व राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर भी निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने BJP और RSS से जुड़े लोगों को KTU और केरल डिजिटल यूनिवर्सिटी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने के लिए प्रक्रिया की अनदेखी की।
पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस नेतृत्व वाले UDF ने इन प्रयासों में अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया और कहा कि अदालत का यह निर्णय उच्च शिक्षा के राजनीतिकरण की कोशिशों के लिए करारा झटका है।