केरल सरकार ने काला जादू विरोधी कानून बनाने से किया इनकार, कैबिनेट नीति का हवाला; हाईकोर्ट ने वैकल्पिक उपायों पर मांगा स्पष्टीकरण

वामपंथी नेतृत्व वाली केरल सरकार ने हाईकोर्ट को सूचित किया है कि वह काला जादू, तंत्र-मंत्र और अन्य अमानवीय प्रथाओं पर रोक लगाने के लिए कोई कानून नहीं बनाएगी। सरकार ने यह रुख राज्य कैबिनेट के नीति-निर्णय के आधार पर अपनाया है। यह जानकारी राज्य के गृह विभाग द्वारा 21 जून 2025 को मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दायर हलफनामे में दी गई।

सरकार ने स्पष्ट किया कि “केरल इनह्यूमन एविल प्रैक्टिसेज़, टोनही, और काला जादू निवारण एवं उन्मूलन विधेयक, 2022” शीर्षक वाला एक मसौदा विधेयक विधि सुधार आयोग की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था। हालांकि, मंत्रिपरिषद ने 5 जुलाई 2023 को विचार-विमर्श के बाद इसे लागू न करने का निर्णय लिया।

सरकार ने अपने हलफनामे में यह भी कहा कि न्यायालय किसी विधायिका को कोई विशेष कानून बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। “किसी विषय पर कानून बनाने के लिए रिट ऑफ़ मैनडेमस विधायिका के विरुद्ध नहीं दी जा सकती,” हलफनामे में कहा गया।

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हालांकि, हाईकोर्ट ने इस विषय पर कानून न बनाए जाने को लेकर चिंता व्यक्त की और राज्य सरकार से पूछा कि वह इस तरह की प्रथाओं पर रोक लगाने के लिए वैकल्पिक रूप से क्या कदम उठा रही है। न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तीन सप्ताह के भीतर एक विस्तृत हलफनामा दायर कर बताए कि कानून न बनने की स्थिति में वह क्या उपाय कर रही है।

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यह जनहित याचिका वर्ष 2022 में “केरल युक्तिवादी संगम” नामक तर्कवादी संगठन द्वारा दायर की गई थी। यह याचिका पथानमथिट्टा ज़िले में दो महिलाओं की तांत्रिक बलि की घटना के बाद दायर की गई थी, जिसमें एक दंपती सहित तीन लोग शामिल थे। याचिका में महाराष्ट्र और कर्नाटक की तर्ज पर काला जादू और शोषणकारी अनुष्ठानों पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून की मांग की गई थी।

यह जनहित याचिका पहले जून 2023 में याची की अनुपस्थिति के कारण खारिज कर दी गई थी, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया गया और वर्तमान कार्यवाही शुरू हुई। युक्तिवादी संगठन ने याचिका में कहा कि न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) के.टी. थॉमस की अध्यक्षता वाले विधि सुधार आयोग ने 2019 में ही एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपकर इस प्रकार की अमानवीय प्रथाओं पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद सरकार ने अब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है।

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याचिका में यह भी मांग की गई है कि मीडिया में अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली सामग्री पर न्यायिक निगरानी हो और फिल्मों, धारावाहिकों तथा ओटीटी सामग्री में अगर तंत्र-मंत्र व काला जादू को कलात्मक या शैक्षिक उद्देश्य से नहीं दिखाया गया हो, तो उसे गैरकानूनी घोषित किया जाए।

न्यायालय ने के.टी. थॉमस आयोग की सिफारिशों और याचिका में उठाए गए सामाजिक मुद्दों पर संज्ञान लिया है। हालांकि, न्यायालय ने सरकार को कानून बनाने का कोई निर्देश नहीं दिया, लेकिन यह स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य को यह बताना होगा कि वह भविष्य में काला जादू और इस प्रकार की प्रथाओं पर कैसे नियंत्रण करेगा।

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