कर्नाटक हाईकोर्ट ने ओला इंजीनियर की मौत की जांच जारी रखने का निर्देश दिया; CEO भाविश अग्रवाल ने सुसाइड नोट की प्रामाणिकता पर उठाए सवाल

कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को बेंगलुरु पुलिस को 38 वर्षीय ओला इलेक्ट्रिक इंजीनियर की संदिग्ध मौत के मामले की जांच जारी रखने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) भाविश अग्रवाल ने मृतक द्वारा छोड़े गए कथित सुसाइड नोट की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया।

यह मामला न्यायमूर्ति मोहम्मद नवाज़ की एकल पीठ के समक्ष आया था। अग्रवाल और ओला के वाहन होमोलॉगेशन विभाग के प्रमुख सुब्रत कुमार दास ने अदालत में याचिका दायर कर उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी, जो भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत दर्ज की गई थी।
एफआईआर 6 अक्टूबर को मृतक इंजीनियर के भाई की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कार्यस्थल पर उत्पीड़न और वेतन बकाया न मिलने के कारण उनके भाई ने 28 सितंबर को आत्महत्या कर ली।

READ ALSO  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी पत्नी के साथ अवैध संबंध रखने के कारण व्यक्ति की हत्या करने वाले को दी जमानत

अग्रवाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एम.एस. श्यामसुंदर ने सुनवाई के दौरान सुसाइड नोट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह “प्रेरित या मनगढ़ंत” हो सकता है।
उन्होंने अदालत से कहा, “मुझे गहरा संदेह है कि मृतक के भाई ही इस डेथ नोट के कथावाचक हैं। अदालतों ने बार-बार कहा है कि सुसाइड नोट कोई गॉस्पल ट्रुथ (पूर्ण सत्य) नहीं होते।”

इस पर शिकायतकर्ता के वकील पी. प्रसन्न कुमार ने कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “ऐसी बातें न करें। यह दिखाता है कि यह कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी से भी बदतर है। भाई पर इस तरह का आरोप कैसे लगाया जा सकता है? पुलिस को जांच करने दें कि नोट किसने लिखा।”

श्यामसुंदर ने यह भी कहा कि मीडिया इंटरव्यू और सोशल मीडिया पर ओला की “टॉक्सिक वर्क कल्चर” पर चर्चा से कंपनी की साख को नुकसान हो रहा है।
उन्होंने अदालत में कहा, “मेरे शेयर गिर रहे हैं। यह बिल्कुल अपमानजनक है।”
इस पर प्रसन्न कुमार ने जवाब दिया कि अदालत के सामने कंपनी की छवि नहीं, बल्कि कर्मचारी की मौत का मुद्दा है।

न्यायमूर्ति नवाज़ ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह निष्पक्ष और कानून के दायरे में रहकर जांच करे तथा अंतिम रिपोर्ट दाखिल करे।
उन्होंने कहा, “पुलिस को निष्पक्ष जांच करनी होगी और कानून की चारदीवारी के भीतर उचित रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पहले दर्ज अस्वाभाविक मृत्यु रिपोर्ट (UDR) को अब बंद कर दिया जाएगा और पुलिस को शिकायत के आधार पर FIR की जांच करनी होगी।

READ ALSO  बॉम्बे हाईकोर्ट ने ठाणे नगर निगम को कौसा-मुंब्रा में गरीबों को मुफ्त चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने का आदेश दिया

राज्य की ओर से विशेष लोक अभियोजक बी.एन. जगदीशा ने अदालत को बताया कि अग्रवाल और दास को नोटिस जारी होने के बावजूद वे अब तक पुलिस के समक्ष उपस्थित नहीं हुए हैं।

अदालत ने दोहराया कि पुलिस को कानून के अनुसार कार्रवाई करनी है, लेकिन याचिकाकर्ताओं को परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
पहले दिए गए 17 अक्टूबर के अंतरिम आदेश को भी बढ़ाते हुए अदालत ने कहा कि अग्रवाल और अन्य को 17 नवंबर तक संरक्षण जारी रहेगा, जब मामले की अगली सुनवाई होगी।

READ ALSO  State Government’s Power To Delegate Investigation Into Offences Under SC/ST Act Cannot Be Curtailed By Rules: Supreme Court

मृतक ओला इलेक्ट्रिक में होमोलॉगेशन इंजीनियर के रूप में कार्यरत था। 28 सितंबर को उसकी मौत के बाद एक 28-पन्नों का सुसाइड नोट मिला, जिसमें प्रबंधन पर उत्पीड़न और वेतन-अभियोजन राशि न देने के आरोप लगाए गए थे।
शिकायत के अनुसार, मौत के दो दिन बाद कंपनी ने मृतक के खाते में ₹17.46 लाख NEFT के जरिए ट्रांसफर किए, जिससे संदेह और गहरा गया।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles