कर्नाटक हाईकोर्ट ने सीपीसी के फैसले में गैर-मौजूद सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देने पर सिविल जज के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया

कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक सिटी सिविल कोर्ट के जज के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है। यह मामला तब सामने आया जब उस जज ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की ऑर्डर VII रूल 10 के तहत एक याचिका खारिज करते समय ऐसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया, जो अस्तित्व में ही नहीं हैं।

यह आदेश न्यायमूर्ति आर. देवदास ने सिविल रिवीजन याचिका संख्या 49/2025 में पारित किया, जो Samaan Capital Limited & Anr. बनाम Mantri Infrastructure Pvt. Ltd. & Ors. से जुड़ी थी।

मामले की पृष्ठभूमि

Samaan Capital Limited (पूर्व में Indiabulls Housing Finance Ltd.) और Samaan Finserve Limited (पूर्व में Indiabulls Commercial Credit Ltd.)—दोनों गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ने Mantri Group की विभिन्न संस्थाओं को ऋण प्रदान किए थे। जब इन संस्थाओं ने चुकौती में चूक की, तो 25 मार्च 2022 को ऋण त्वरक नोटिस (Acceleration Notice) जारी किया गया और 28 सितंबर 2024 को गिरवी रखे गए शेयरों को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू की गई।

Video thumbnail

इसके विरोध में Mantri Infrastructure Pvt. Ltd. ने Commercial Suit (Com.O.S.No.1351/2024) दाखिल किया, लेकिन बाद में वह बिना पुनः दाखिल करने की अनुमति के वापस ले लिया गया। इसके तुरंत बाद, एक नई याचिका (O.S.No.7166/2024) लगभग समान प्रार्थनाओं के साथ IX अतिरिक्त सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट, बेंगलुरु में दाखिल की गई।

READ ALSO  प्रक्रियागत देरी के कारण निर्वाचित उम्मीदवार को पद से वंचित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

कानूनी मुद्दा

मुख्य सवाल यह था कि क्या नया वाद Commercial Courts Act, 2015 के तहत “वाणिज्यिक विवाद” की श्रेणी में आता है? यदि हां, तो मामला केवल वाणिज्यिक न्यायालय में ही चल सकता है, सामान्य सिविल कोर्ट में नहीं।

Samaan Capital ने Order VII Rule 10 CPC के तहत Interlocutory Application No. 8/2024 दायर कर याचिका को क्षेत्राधिकार के अभाव में लौटाने की मांग की। लेकिन सिटी सिविल कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए दो कथित सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया:

  1. M/s Jalan Trading Co. Pvt. Ltd. v. Millennium Telecom Ltd.
  2. Kvaerner Cementation India Ltd. v. Achil Builders Pvt. Ltd.

हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति आर. देवदास ने पाया कि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट और अन्य कानूनी स्रोतों में ऐसे कोई फैसले मौजूद ही नहीं हैं। यहां तक कि वादी पक्ष के वरिष्ठ वकील श्याम सुंदर एम.एस. ने भी माना कि उनके द्वारा इन फैसलों का कोई हवाला नहीं दिया गया था।

कोर्ट ने कहा:
“और भी ज्यादा चिंताजनक यह है कि learned judge ने ऐसे फैसलों का हवाला दिया जो सर्वोच्च न्यायालय या किसी अन्य अदालत द्वारा कभी दिए ही नहीं गए… यह एक गंभीर न्यायिक चूक है, जिसकी गहन जांच और उचित कार्रवाई आवश्यक है।”

READ ALSO  पहलवान यौन उत्पीड़न मामला: दिल्ली कोर्ट ने बृज भूषण को 18 जुलाई को तलब किया

इसके अलावा, कोर्ट ने वादी पक्ष की ओर से वाणिज्यिक अदालत की न्यायिक सीमा से बचने के लिए की गई इस चाल को “चतुर रणनीति” बताते हुए भी निंदा की।
“यह स्वीकार्य नहीं है कि जिन्होंने पहले वाणिज्यिक वाद दायर किया, वह बिना अनुमति के उसे वापस लें और फिर उसी विवाद पर कुछ अन्य पक्षकारों को जोड़कर एक सिविल कोर्ट में नया मुकदमा दायर करें।”

कोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने सिविल रिवीजन याचिका स्वीकार करते हुए सिटी सिविल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और यह निर्देश दिया कि वादपत्र को Order VII Rule 10 CPC के तहत वादियों को वापस कर दिया जाए।

READ ALSO  केजरीवाल, संजय सिंह द्वारा मानहानि मामले से संबंधित याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की मांग के बाद गुजरात HC के मुख्य न्यायाधीश ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया

हालांकि, Rule 10A के तहत कोर्ट ने वादियों को 2 अप्रैल 2025 तक उपयुक्त ट्रांसफर या राहत के लिए आवेदन करने का अवसर भी दिया है, अन्यथा वादपत्र स्वतः वापस मान लिया जाएगा।

अंत में हाईकोर्ट ने आदेशित किया:
“इस आदेश की प्रति माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत की जाए, ताकि संबंधित learned judge के विरुद्ध आगे की कार्रवाई की जा सके।”

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles