कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को धर्मस्थल में “कई हत्याओं, बलात्कारों और गुप्त दफन” के आरोपों की जांच कर रही विशेष जांच टीम (SIT) की कार्यवाही पर 12 नवंबर तक अंतरिम रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति मोहम्मद नवाज़ की एकल पीठ ने यह आदेश सामाजिक कार्यकर्ताओं गिरीश मट्टनावर, महेश तिम्मारोड़ी, जयंथ टी और विट्टल गौड़ा की याचिका पर पारित किया, जिन्होंने धर्मस्थल पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR को रद्द करने की मांग की थी। ये वही कार्यकर्ता हैं जिन्होंने पहले सफाईकर्मी सी. एन. चिन्णैया का समर्थन किया था, जिसने धर्मस्थल में कई हत्याओं और दफन के सनसनीखेज आरोप लगाए थे।
विवाद तब शुरू हुआ जब चिन्णैया, जिसे बाद में झूठी गवाही (perjury) के आरोप में गिरफ्तार किया गया, ने दावा किया कि पिछले दो दशकों में उसने कई शवों को धर्मस्थल में दफनाया, जिनमें कुछ महिलाओं के शव भी शामिल थे जिन पर यौन हमले के निशान थे। उसके आरोपों ने मंदिर प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे।
 
याचिकाकर्ता कार्यकर्ता, जो 2012 धर्मस्थल बलात्कार और हत्या मामले में न्याय की मांग करने वाले आंदोलन से जुड़े रहे हैं, ने चिन्णैया के आरोपों का समर्थन किया था। लेकिन जब जुलाई 2025 में चिन्णैया ने एक खोपड़ी मजिस्ट्रेट के सामने पेश की, तो SIT ने कार्यकर्ताओं पर शक जताया कि उन्हें इस खोपड़ी के स्रोत की जानकारी थी।
SIT ने बार-बार समन भेजे, और जब याचिकाकर्ताओं को 24 अक्टूबर को दसवां समन मिला, तो उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जांच की प्रक्रिया को चुनौती दी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता एस. बालन ने कहा कि FIR भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) की धारा 211(क) के तहत दर्ज की गई, जबकि ऐसा करना भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita – BNSS) की धारा 174(1)(i) के प्रावधानों का उल्लंघन है।
उनका कहना था कि चिन्णैया के बयान असंज्ञेय अपराध (non-cognisable offence) से जुड़े थे, इसलिए पुलिस को FIR दर्ज करने से पहले मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी कहा कि SIT ने बाद में धोखाधड़ी (धारा 336), झूठे साक्ष्य (धारा 230-233, 236, 240, 248) जैसी नौ धाराएँ बिना वैधानिक प्रक्रिया के जोड़ दीं।
विशेष लोक अभियोजक बी. एन. जगदीशा ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता स्वयं इन आरोपों की जांच की मांग करते रहे हैं और वरिष्ठ अधिकारियों से कार्रवाई के लिए आग्रह करते रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि चिन्णैया ने इन्हीं कार्यकर्ताओं पर दबाव डालने और जांच में बाधा डालने के आरोप लगाए हैं।
जगदीशा ने कहा कि यदि याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तारी का डर है, तो उन्हें पूर्व-गिरफ्तारी जमानत (anticipatory bail) लेनी चाहिए, न कि जांच पर पूर्ण रोक की मांग करनी चाहिए।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने SIT को 12 नवंबर तक किसी भी प्रकार की जांच या जबरन कार्रवाई से रोका और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को इस बीच किसी प्रकार की परेशानी या उत्पीड़न न किया जाए।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि उन्हें SIT की ओर से व्हाट्सऐप और ईमेल के ज़रिए नौ नोटिस, और दसवां नोटिस धारा 35(3) BNS के तहत भेजा गया, जिसमें 27 अक्टूबर को पूछताछ के लिए बुलाया गया था और गिरफ्तारी की संभावना जताई गई थी। उन्होंने कहा कि FIR में उनके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष आरोप नहीं है।
IPS अधिकारी प्रोनब मोहंती के नेतृत्व वाली SIT सरकार को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपने की तैयारी में थी जब हाईकोर्ट ने यह रोक लगाई। SIT मजिस्ट्रेट के समक्ष एक शिकायत रिपोर्ट (चार्जशीट जैसी) दाखिल करने वाली थी, जिसमें झूठी गवाही और खोपड़ी पेश करने के आरोप शामिल थे।
हाल ही में SIT को प्राप्त फोरेंसिक रिपोर्टों में पुष्टि हुई कि धर्मस्थल से निकाले गए कंकाल पुरुष व्यक्तियों के हैं। SIT ने नेत्रावती नदी के किनारे और बंगलगुड्डे वन क्षेत्र में कई स्थानों पर खुदाई कराई थी, जिनमें से दो जगहों पर मानव अवशेष मिले थे।


 
                                     
 
        



