बेंगलुरु — एक ऐतिहासिक निर्णय में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी समुदाय को शिक्षा और रोजगार के लिए अलग-अलग आरक्षण श्रेणियों में विभाजित नहीं किया जा सकता। अदालत ने इसे समानता और आरक्षण प्रणाली में एकरूपता के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया।
यह फैसला कोलार जिले की वि. सुमित्रा द्वारा दायर याचिका पर आया, जिन्होंने राज्य सरकार द्वारा बलाजिगा/बनजिगा समुदाय को शिक्षा के लिए समूह ‘बी’ और रोजगार के लिए समूह ‘डी’ में वर्गीकृत किए जाने को चुनौती दी थी। उन्होंने तर्क दिया कि यह विभाजन भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है।
न्यायमूर्ति सुरज गोविंदराज ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि बलाजिगा/बनजिगा समुदाय को शिक्षा और रोजगार दोनों ही क्षेत्रों में एक समान रूप से समूह ‘बी’ में वर्गीकृत किया जाए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की पूर्ववर्ती नीति संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए अनुच्छेद 15(4) और 16(4) का उल्लंघन करती है।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब सुमित्रा को 1993 में ओबीसी कोटे के तहत प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका के रूप में नियुक्त किया गया, लेकिन 1996 में उन्हें एक नोटिस मिला जिसमें कहा गया कि उनकी जाति अब रोजगार के संदर्भ में समूह ‘डी’ में आती है, जिससे उनकी नियुक्ति के लिए दिया गया जाति प्रमाण पत्र अमान्य हो गया।
न्यायमूर्ति गोविंदराज ने अपने फैसले में कहा, “अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता का सिद्धांत आरक्षण के मामले में भी समान व्यवहार की मांग करता है। एक ही समुदाय को अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग समूहों में रखना मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण है।”