कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को निलंबित जेडी(एस) नेता प्रज्वल रेवन्ना को बलात्कार और यौन उत्पीड़न के एक हाई-प्रोफाइल मामले में जमानत के लिए सत्र न्यायालय का रुख करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति एस. आर. कृष्ण कुमार ने स्पष्ट किया कि उचित कानूनी प्रक्रिया के तहत पहले ट्रायल कोर्ट से राहत लेना जरूरी है।
न्यायालय ने कहा कि रेवन्ना को पहले निचली अदालत में सभी उपायों का उपयोग करना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो वहां के निर्णय के बाद हाईकोर्ट में दोबारा याचिका दाखिल कर सकते हैं।
यह इस मामले में रेवन्ना की दूसरी जमानत याचिका थी। उनकी पहली याचिका अक्टूबर 2023 में हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी राहत देने से इनकार कर दिया था। मार्च 2024 में उन्होंने बदलते हालात, विशेष रूप से ट्रायल में हो रही देरी का हवाला देते हुए फिर से याचिका दाखिल की।

रेवन्ना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने दलील दी कि हाईकोर्ट को सीधे याचिका सुनने का अधिकार है, लेकिन पीठ ने स्पष्ट किया कि पहले सत्र न्यायालय में याचिका पर निर्णय लिया जाना चाहिए। नवदगी के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह जमानत याचिका पर दाखिल होने की तारीख से 10 दिन के भीतर निर्णय करे।
रेवन्ना पर बलात्कार, अश्लील सामग्री के प्रसार और निगरानी से संबंधित आरोपों में चार अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज हैं। ये मामले उस समय सामने आए जब यौन शोषण से जुड़े 2,900 से अधिक वीडियो क्लिप्स सोशल मीडिया और इंटरनेट पर प्रसारित हुए।
पहली शिकायत अप्रैल 2023 में रेवन्ना के पारिवारिक फार्महाउस में काम करने वाली एक घरेलू सहायिका ने दर्ज कराई थी, जिसमें उसने 2021 से लगातार यौन उत्पीड़न और वीडियो लीक करने की धमकी का आरोप लगाया था।
बेंगलुरु की एक ट्रायल कोर्ट पहले ही भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत उनके खिलाफ बलात्कार, आपराधिक धमकी, निगरानी और बिना सहमति के निजी तस्वीरों के प्रसार जैसे आरोप तय कर चुकी है।
रेवन्ना की कानूनी टीम का कहना है कि मुकदमे में देरी उनके अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। वहीं, राज्य की ओर से विशेष लोक अभियोजकों प्रो. रवि वर्मा कुमार और बी. एन. जगदीशा ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि मुकदमे में देरी खुद आरोपी और उनके परिवार की रणनीतियों के कारण हो रही है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी कानूनी तर्क उचित मंच पर उठाए जा सकते हैं और सत्र न्यायालय को अब जमानत याचिका पर शीघ्र निर्णय लेना होगा।