कर्नाटक हाईकोर्ट ने केन्द्र को वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की ₹10,000 सीमा की समीक्षा करने की अनुशंसा की; अंतरिम रूप से ₹30,000 मासिक भरण-पोषण तय

कर्नाटक हाईकोर्ट ने Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 की धारा 9 के तहत तय ₹10,000 मासिक भरण-पोषण की सीमा को आज की परिस्थितियों के अनुरूप नहीं माना और केन्द्र सरकार से इसकी समीक्षा करने की अनुशंसा की। अदालत ने कहा कि यह सीमा “समय में जमी हुई” है और महंगाई के साथ तालमेल नहीं बैठाती।

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने टिप्पणी की कि सीमा अब आर्थिक वास्तविकताओं को नहीं दर्शाती और इसे जीवन-यापन सूचकांक के अनुसार बदला जाना चाहिए, ताकि अधिनियम “खोखला वादा” न रहकर वृद्धावस्था में गरिमा का वास्तविक आश्वासन बना रहे।

अदालत की मुख्य बातें

  • सीमा अप्रासंगिक: अदालत ने सरकारी मुद्रास्फीति आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2007 में जो ₹100 से खरीदा जा सकता था, उसकी कीमत 2025 में लगभग ₹1,000 हो गई है, जबकि ₹10,000 की सीमा आज भी वैसी ही है।
  • अंतरिम राहत बढ़ाई गई: पुनर्विचार लंबित रहने तक अदालत ने अंतरिम रूप से प्रति अभिभावक ₹30,000 मासिक भरण-पोषण तय किया।
  • ट्रिब्यूनल की शक्तियाँ स्पष्ट की गईं: सहायक आयुक्त द्वारा ₹5 लाख एकमुश्त “मुआवजा” देने का आदेश रद्द करते हुए कहा गया कि अधिनियम/नियमों के तहत ट्रिब्यूनल केवल मासिक भरण-पोषण ही तय कर सकते हैं।
  • बकाया भुगतान का निर्देश: याचिकाकर्ताओं को अप्रैल 2021 से ₹10,000 प्रति माह माता-पिता को देने का निर्देश दिया गया।
  • केन्द्र का ध्यान आकर्षित: आदेश की प्रति अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को भेजने का निर्देश दिया गया ताकि यह वित्त मंत्रालय तक पहुँचे और संसद इस पर विचार कर सके।
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अदालत ने कहा कि सीमा को स्थिर रखने से अधिनियम का उद्देश्य कमजोर हो जाएगा।
“भरण-पोषण मरुस्थल में चमकती मृगतृष्णा जैसा नहीं होना चाहिए… अवास्तविक राहत असली राहत नहीं है।”

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हालांकि संसद ने 2019 में संशोधन किया था, पर धारा 9(2) की सीमा नहीं बदली गई। प्रस्ताव था कि सीमा हटाकर आवश्यकता-आधारित भरण-पोषण लागू किया जाए, मगर वह अधिनियमित नहीं हुआ। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चूँकि सीमा केंद्रीय कानून में तय है, इसलिए राज्य अपने नियमों से ₹10,000 से अधिक राशि निर्धारित नहीं कर सकते।

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यह टिप्पणियाँ सुनील एच. बोहरा एवं अन्य की याचिका पर आईं, जिसमें ट्रिब्यूनल ने माता-पिता को ₹5 लाख एकमुश्त भुगतान का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने आदेश निरस्त कर मामला ट्रिब्यूनल को लौटाया, अंतरिम भरण-पोषण तय किया और केन्द्र को सीमा संशोधित करने की अनुशंसा की।

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