कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार के उस विवादास्पद आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें 43 आपराधिक मामलों को वापस लेने का निर्देश दिया गया था। इनमें वर्ष 2022 के हुबली दंगों से जुड़े मामले भी शामिल थे। अदालत ने इस आदेश को “शुरुआत से ही अमान्य (non est)” करार दिया और कहा कि इसके सभी कानूनी परिणाम लागू होंगे।
यह फैसला अधिवक्ता गिरीश भारद्वाज द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) पर आया, जिसमें 15 अक्टूबर 2024 को गृह विभाग द्वारा जारी आदेश को चुनौती दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश एन.वी. अंजारिया और न्यायमूर्ति के.वी. अरविंद की खंडपीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए सरकार के निर्देश को रद्द कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश अंजारिया, जो जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होने वाले हैं, ने अपने अंतिम निर्णय के दौरान भावुक होकर कहा, “यह इस पीठ पर मेरा अंतिम दिन है। मैं सभी वकीलों, कोर्ट स्टाफ और जिन-जिन लोगों ने मेरा साथ दिया, उन सबका धन्यवाद करता हूं। यह मेरी अंतिम सुनवाई, अंतिम आदेश और अंतिम उच्चारण है।”
याचिकाकर्ता का तर्क: अभियोजन की स्वतंत्रता पर हमला
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता वेंकटेश दलवाई ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने अभियोजन अधिकारियों को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 321 के तहत मामलों को वापस लेने के लिए निर्देश देकर अपनी सीमा से अधिक कार्य किया है। उन्होंने कहा कि अभियोजकों का कर्तव्य है कि वे हर मामले का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन करें, न कि सरकार के आदेश के अनुसार कार्य करें।
दलवाई ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अभियोजक मात्र सरकार के प्रतिनिधि नहीं होते और उन्हें मामलों के गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेना होता है। उन्होंने यह भी बताया कि विधि विभाग और अभियोजन विभाग दोनों ने इन मामलों को वापस लेने के खिलाफ राय दी थी, लेकिन गृह विभाग ने इसे नजरअंदाज कर आदेश जारी कर दिया।
गंभीर आरोप और राजनीतिक प्रभाव
जिन 43 मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की गई थी, उनमें दंगा, हत्या का प्रयास, पुलिसकर्मियों पर हमला और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे गंभीर आरोप शामिल थे। इनमें से कई मामले 2022 में हुबली में हुए दंगों से संबंधित थे, जो एक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद भड़के थे। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस थाने में तोड़फोड़ और चप्पल फेंकने का आरोप है।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि इन मामलों को चुनकर राजनीतिक लाभ के लिए वापस लिया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि सूची में कई प्रभावशाली राजनेताओं, पूर्व मंत्रियों, विधायकों और संगठनों के पदाधिकारियों के नाम थे।
“2008 से 2023 तक दर्ज किए गए आपराधिक मामलों की समीक्षा की गई और उनमें से 43 को वापस लेने के लिए चुना गया। इनमें से अधिकांश में प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियों और कार्यकर्ताओं का नाम शामिल था, जिससे इस प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठते हैं,” याचिका में कहा गया।
कोर्ट का निर्देश और आगे की प्रक्रिया
हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब इन सभी मामलों की कानूनी प्रक्रिया सामान्य रूप से जारी रहेगी। अदालत द्वारा आदेश को “शुरुआत से अमान्य” घोषित किए जाने का मतलब है कि इसके आधार पर दायर सभी वापसी आवेदन भी अमान्य माने जाएंगे।