कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में धर्मस्थल में पिछले दो दशकों के दौरान कथित रूप से बलात्कार और हत्या के पीड़ितों के सामूहिक दफन के मामलों पर रिपोर्टिंग पर रोक लगाने वाले निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है। यह आदेश प्रेस की स्वतंत्रता के पक्ष में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया और यूट्यूब चैनल कुदला रैम्पेज की उस याचिका को मंजूर किया, जिसमें 8 जुलाई को सिविल कोर्ट द्वारा दिए गए एकतरफा अंतरिम आदेश को चुनौती दी गई थी। सिविल कोर्ट के उस आदेश में चैनल को धर्मस्थल मंजूनाथस्वामी मंदिर की देखरेख करने वाले परिवार के खिलाफ किसी भी “मानहानिकारक सामग्री” के प्रकाशन से रोका गया था।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी एकतरफा अंतरिम निषेधाज्ञा को रद्द किया जाता है। यह मामला पुनर्विचार के लिए सक्षम सिविल कोर्ट को सौंपा जाता है, जो इस आदेश में दिए गए निर्देशों और टिप्पणियों के आधार पर आवेदन पर पुनः विचार करे।”

जस्टिस नागप्रसन्ना ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट ने इस मामले के नागरिक या आपराधिक पहलुओं पर कोई राय नहीं दी है और सभी मुद्दे, सिवाय इस आदेश में तय प्रश्न के, निचली अदालत में विचाराधीन रहेंगे। ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया है कि वह इस मामले में बिना देरी के सुनवाई करे।
गैग ऑर्डर (प्रकाशन पर रोक) धर्मस्थल के धर्माधिकारी वीरेन्द्र हेगड़े के भाई हर्षेन्द्र कुमार डी द्वारा हासिल किया गया था। उन्होंने याचिका में दावा किया था कि इंटरनेट पर मौजूद करीब 8,000 डिजिटल लिंक—जिनमें समाचार लेख, सोशल मीडिया पोस्ट और वीडियो शामिल हैं—उनकी, उनके परिवार की और मंदिर प्रशासन की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं और उन्हें हटाया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कुदला रैम्पेज के वकील ए. वेलन ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता के लिए “मील का पत्थर” बताया।
उन्होंने कहा, “कर्नाटक हाईकोर्ट ने केवल एक निर्णय नहीं दिया है, बल्कि हमारे लोकतंत्र की एक मूलभूत नींव को दोहराया है।”
वेलन ने सिविल कोर्ट के आदेश को “संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ पूर्व प्रतिबंध का उदाहरण” बताया और कहा कि यह आदेश बहुत व्यापक, अधिकार क्षेत्र से बाहर और पत्रकारिता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला था। उन्होंने कहा, “यह रिपोर्टिंग को दंडित करने और एक गंभीर राष्ट्रीय मुद्दे में सार्वजनिक जांच को दबाने का प्रयास था।”