कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में बेंगलुरु के प्रतिष्ठित सेंचुरी क्लब को सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत “लोक प्राधिकरण” करार दिया है। अदालत ने कहा कि क्लब को 1913 में तत्कालीन मैसूर महाराजा द्वारा दी गई ज़मीन राज्य की ओर से एक महत्वपूर्ण आर्थिक सहायता थी, जिसके चलते यह RTI कानून के दायरे में आता है।
न्यायमूर्ति सुरज गोविंदराज ने क्लब की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने कर्नाटक सूचना आयोग के 2018 के आदेश को चुनौती दी थी। आयोग ने क्लब को RTI के तहत मांगी गई सूचना देने का निर्देश दिया था।
“क्लब को जिस भूमि का अनुदान मिला था, वह राज्य की ओर से एक महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता मानी जाएगी, भले ही वह तत्कालीन महाराजा मैसूर द्वारा दी गई हो,” अदालत ने अपने फैसले में कहा।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि क्लब का संपूर्ण अस्तित्व उसी ज़मीन पर आधारित है। “बिना इस ज़मीन के क्लब का संचालन ही संदिग्ध हो जाएगा,” आदेश में कहा गया।
क्लब ने अपनी याचिका में दावा किया था कि वह केवल सदस्यता शुल्क और योगदान से चलता है और उसे मिली ज़मीन महाराजा की व्यक्तिगत भेंट थी। इस पर अदालत ने कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया जिससे यह साबित हो सके कि ज़मीन महाराजा की निजी संपत्ति थी। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि ज़मीन मैसूर राज्य की संपत्ति थी, इसलिए यह एक सरकारी अनुदान माना जाएगा।
न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि भले ही क्लब अब स्वयं की निधि से चलता हो, लेकिन जिस ज़मीन की आज की बाजार कीमत है, उसके मुकाबले सदस्यता शुल्क का योगदान नगण्य है।
यह मामला 2012 में शुरू हुआ जब अधिवक्ता एस. उमापति ने RTI अधिनियम की धारा 4 के तहत क्लब से कुछ दस्तावेज मांगे थे। क्लब ने यह कहते हुए सूचना देने से इनकार कर दिया कि वह RTI अधिनियम के तहत “लोक प्राधिकरण” नहीं है। उमापति ने फिर सूचना आयोग का रुख किया, जिसने 2018 में क्लब को जानकारी देने का निर्देश दिया।