दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट परिसर के वकीलों ने चेक बाउंस मामलों की सुनवाई करने वाली 34 डिजिटल कोर्ट्स को राउज एवेन्यू कोर्ट परिसर में स्थानांतरित किए जाने के खिलाफ शुक्रवार को लगातार पांचवें दिन कामकाज से विरत रहकर विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध अब अनशन में तब्दील हो चुका है, जो पिछले दो दिनों से जारी है।
शाहदरा बार एसोसिएशन (SBA) के अध्यक्ष एडवोकेट वी. के. सिंह ने कहा, “पहले हमारी लेबर कोर्ट्स हटाई गईं, अब चेक बाउंस कोर्ट्स भी हटा दी गईं… हम कोई बड़े वकील नहीं हैं। हम रोज़ी-रोटी कैसे कमाएं?”
उन्होंने बताया कि ट्रांस यमुना क्षेत्र में रहने वाले अधिकतर वकील छोटे-मोटे मामलों पर निर्भर रहते हैं और चेक बाउंस के मुकदमे उनकी आय का प्रमुख स्रोत हैं। “कई बार एक पूरा मामला करने के बाद भी सिर्फ 20-30 हज़ार रुपये ही मिलते हैं। क्या यही न्याय है जो दरवाज़े तक पहुंचता है? सब कुछ ठीक चल रहा था… अब सब परेशान हैं,” सिंह ने कहा।

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार, स्थानांतरित की जा रही 34 कोर्ट्स में द्वारका की 9, तीस हजारी की 7, साकेत की 6, कड़कड़डूमा की 5, रोहिणी की 4 और पटियाला हाउस की 3 कोर्ट्स शामिल हैं। इन कोर्ट्स के जज अब राउज एवेन्यू कोर्ट परिसर (ITO मेट्रो स्टेशन के पास) में बैठेंगे, जबकि संबंधित जिला कोर्ट्स के कर्मचारी—रीडर, अहलमद और स्टेनो—अपने-अपने मूल स्थानों से ही काम करते रहेंगे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 30 मई 2025 को जारी अधिसूचना में कहा कि यह निर्णय “उपलब्ध संसाधनों और इन्फ्रास्ट्रक्चर के इष्टतम उपयोग” और “पर्याप्त स्थान की कमी” को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। अधिसूचना में यह भी स्पष्ट किया गया कि जब तक स्थायी व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक स्टाफ और रिकॉर्ड अपने पुराने जिलों से ही संचालित होंगे और ये कोर्ट्स प्रशासनिक रूप से अपने मूल जिलों के अधीन ही रहेंगे।
हालांकि, यह स्पष्टीकरण कड़कड़डूमा के वकीलों की चिंता को दूर नहीं कर सका। वहां प्रैक्टिस करने वाले एडवोकेट पारस जैन ने कहा, “सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण डिजिटल कोर्ट्स का शिफ्ट होना क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के सिद्धांतों का उल्लंघन है। अगर कोई वादी या वकील किसी आपात स्थिति में जज से मिलना चाहे, तो वह कैसे पहुंचेगा?” उन्होंने आगे कहा, “अब भी यह स्पष्ट नहीं है कि राउज एवेन्यू में बैठे जज के सामने साक्ष्य की रिकॉर्डिंग कैसे होगी। वर्चुअल सुविधा की कमी न्यायिक प्रक्रिया में दूरी पैदा करेगी।”
इससे पहले, दिल्ली की सभी जिला अदालतों की बार एसोसिएशनों की समन्वय समिति ने भी इस फैसले के विरोध में कामकाज से विरत रहने का निर्णय लिया था, लेकिन 7 जून को यह हड़ताल तब वापस ले ली गई जब दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आश्वासन दिया कि डिजिटल कोर्ट्स केवल डिजिटल रूप में ही कार्य करेंगी और अन्य सभी न्यायिक कार्य स्थानीय कोर्ट्स में ही होंगे।
इसके बावजूद शाहदरा बार एसोसिएशन ने विरोध जारी रखने का निर्णय लिया। 4 जुलाई को जारी एक नोटिस में उन्होंने कहा कि शनिवार, 5 जुलाई को भी कार्य से विरत रहेंगे और अनशन को न्यायालय परिसर के ‘फैसिलिटेशन सेंटर’ के पास जारी रखा जाएगा। नोटिस में कहा गया, “सभी वकीलों से अनुरोध है कि वे किसी भी कोर्ट में न तो शारीरिक रूप से और न ही वर्चुअली पेश हों। यदि कोई वकील ऐसा करता पाया गया, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।” साथ ही जजों से यह भी अनुरोध किया गया कि वे इस दौरान कोई प्रतिकूल आदेश पारित न करें।
दिल्ली की निचली अदालतों में लंबित लगभग 15 लाख मामलों में से 4.5 लाख—यानी कुल मामलों का 30 प्रतिशत से अधिक—केवल चेक बाउंस से संबंधित हैं। ऐसे में यह मुद्दा न केवल वकीलों की जीविका से जुड़ा है, बल्कि न्यायिक व्यवस्था की दक्षता और पहुंच पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
विरोध प्रदर्शन के और तेज होने के संकेत मिल रहे हैं, जबकि वकीलों की मांग है कि स्थानीय अदालतों में मूलभूत ढांचे की कमी को दूर कर उन्हें उनके ही क्षेत्र में न्याय दिलाने की व्यवस्था की जाए।