वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई अंदरूनी जांच पर गंभीर सवाल उठाए हैं। सिब्बल ने आरोप लगाया कि इस जांच में न पारदर्शिता बरती गई, न ही न्यायिक प्रक्रिया का पालन हुआ, और जज को अपनी बात रखने का मौका दिए बिना रिपोर्ट तैयार कर दी गई।
दरअसल, मार्च में दिल्ली में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने की घटना हुई थी। आग बुझाने के दौरान उनके आउटहाउस से नकदी मिलने की बात सामने आई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय समिति बनाकर जांच करवाई।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सिब्बल ने कहा, “अगर सरकार महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करना चाहती है, तो उसे संसद के जरिए करना चाहिए, लेकिन यहां बिना ठोस जांच के सीधे हस्तक्षेप किया गया।” उन्होंने कहा कि जिस आउटहाउस से नकदी मिली, वह जज को आवंटित परिसर का हिस्सा था, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने बिना पूरी जांच के कार्रवाई की।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधवाला, और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थे। सिब्बल ने इस समिति की आलोचना करते हुए कहा, “आपने जांच की, रिपोर्ट बनाई, लेकिन जज की बात तक नहीं सुनी। यह न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
सिब्बल ने इस पूरे घटनाक्रम के पीछे संभावित मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा, “या तो सरकार किसी बात से नाराज है, या फिर एनजेएसी (नेशनल जुडिशियल अप्वाइंटमेंट्स कमीशन) को फिर से लाने की कोशिश हो रही है, ताकि न्यायपालिका पर दबाव बनाया जा सके।”
सिब्बल ने एक और मामले का हवाला देते हुए कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की जांच छह महीने से लंबित है। उन्होंने सवाल उठाया, “राज्यसभा सचिवालय कहता है कि मेरी सिग्नेचर नहीं मिल रही है। छह महीने बीत गए, लेकिन वे सत्यापन नहीं कर पाए। क्या यह दोहरा रवैया नहीं है?”
बताया जा रहा है कि जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट पिछले महीने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी थी। सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया कि रिपोर्ट में यह तक नहीं बताया गया कि कितनी नकदी बरामद हुई और यह कैसे मान लिया गया कि वह जज की जानकारी में रखी गई थी।