सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी आरोपी की उम्र तय करने के लिए स्कूल के रिकॉर्ड या विश्वसनीय दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, या उनमें छेड़छाड़ की आशंका है, तो अदालतें मेडिकल राय (ऑसिफिकेशन टेस्ट) पर भरोसा कर सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में मेडिकल टेस्ट से निर्धारित उम्र में 2 साल (कम या ज्यादा) की त्रुटि की गुंजाइश (Margin of Error) को स्वीकार किया जा सकता है।
जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने 35 साल से अधिक पुराने एक हत्या के मामले में फैसला सुनाते हुए यह व्यवस्था दी। कोर्ट ने इस नियम का लाभ देते हुए एक आरोपी को घटना के समय नाबालिग (जुवेनाइल) माना और उसे रिहा करने का आदेश दिया। वहीं, मामले के पुराना होने और दोषियों की उम्र को देखते हुए कोर्ट ने बाकी तीन दोषियों की उम्रकैद की सजा को घटाकर 14 साल की निश्चित कैद में बदल दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील पटना हाईकोर्ट के 14 दिसंबर 2017 के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। मूल रूप से, ट्रायल कोर्ट (अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश I, गया) ने आठ आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302/149 (सामान्य उद्देश्य के साथ हत्या) और 323/149 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट में अपील के दौरान तीन आरोपियों—गेंदा पंडित, कौलेश्वर पंडित और रामजी यादव—की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उनके खिलाफ मामला समाप्त हो गया। हाईकोर्ट ने बाकी आरोपियों की सजा बरकरार रखी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
पक्षों की दलीलें
नाबालिग होने का दावा: सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता नंबर 1 (उमेश यादव) और अपीलकर्ता नंबर 2 (गणेश यादव) ने पहली बार यह तर्क दिया कि घटना की तारीख (30 अगस्त 1988) को वे 18 वर्ष से कम आयु के थे, इसलिए उन्हें ‘जुवेनाइल’ माना जाना चाहिए।
सजा कम करने की मांग: मामले के गुण-दोष (Merits) पर वकीलों ने दोषसिद्धि (Conviction) को चुनौती नहीं दी, लेकिन दया की मांग की। अपीलकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि घटना को तीन दशक से अधिक समय बीत चुका है और जेल में रहने के दौरान उनका आचरण अच्छा रहा है। शिव कुमार बनाम कर्नाटक राज्य (2023) के फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने उम्रकैद को एक निश्चित अवधि की सजा में बदलने की प्रार्थना की।
वहीं, राज्य सरकार के वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए दोषी किसी भी उदारता के पात्र नहीं हैं।
कोर्ट का विश्लेषण
1. उम्र का निर्धारण और ‘दो साल का नियम’
चूंकि नाबालिग होने का दावा पहली बार उठाया गया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को जांच का आदेश दिया था। रिपोर्ट में सामने आया कि गणेश यादव (अपीलकर्ता सं. 2) की उम्र साबित करने के लिए कोई दस्तावेजी सबूत नहीं था। मेडिकल बोर्ड द्वारा 3 मार्च 2020 को किए गए ऑसिफिकेशन टेस्ट (हड्डी की जांच) में उसकी उम्र लगभग 19 वर्ष आंकी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने जया माला बनाम गृह सचिव, जम्मू और कश्मीर सरकार (1982) के फैसले का हवाला देते हुए कहा:
“यह सर्वविदित है और न्यायिक नोटिस लिया जा सकता है कि रेडियोलॉजिकल जांच द्वारा पता लगाई गई उम्र में दोनों तरफ (कम या ज्यादा) दो साल की त्रुटि की गुंजाइश होती है।”
इस सिद्धांत को लागू करते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि ऑसिफिकेशन टेस्ट में तय उम्र (19 साल) में से 2 साल कम कर दिए जाएं, तो घटना के समय गणेश यादव की उम्र 17 साल मानी जाएगी। इसलिए, उसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ मिलेगा।
हालांकि, कोर्ट ने उसके बड़े भाई उमेश यादव (अपीलकर्ता सं. 1) को यह लाभ देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने तर्क दिया कि चूंकि छोटे भाई गणेश की उम्र ही 19 साल (राहत के साथ 17 साल) आंकी गई है, तो स्वाभाविक रूप से बड़े भाई उमेश की उम्र उससे अधिक होगी और वह घटना के समय नाबालिग नहीं हो सकता।
2. सजा में बदलाव
सजा के बिंदु पर विचार करते हुए पीठ ने इस तथ्य को महत्वपूर्ण माना कि घटना 1988 में हुई थी, यानी इसे 35 साल से ज्यादा समय बीत चुका है। इसके अलावा, अन्य अपीलकर्ताओं—बालेश्वर पंडित (67 वर्ष) और मुनेश्वर पंडित (59 वर्ष)—की वर्तमान उम्र को देखते हुए कोर्ट ने नरमी बरती।
कोर्ट ने कहा कि इन परिस्थितियों में न्याय का तकाजा है कि उनकी आजीवन कारावास की सजा को संशोधित कर ’14 साल के वास्तविक कारावास’ (Fixed Term) तक सीमित कर दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
अदालत ने अपील का निपटारा करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:
- गणेश यादव (अपीलकर्ता सं. 2): उसे घटना के समय ‘जुवेनाइल’ घोषित किया गया। चूंकि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत अधिकतम सजा 3 साल है और वह पहले ही 8 साल से अधिक की सजा काट चुका है, कोर्ट ने उसे तत्काल रिहा करने का आदेश दिया (यदि किसी अन्य मामले में वांछित न हो)।
- उमेश यादव, बालेश्वर पंडित और मुनेश्वर पंडित: इनकी दोषसिद्धि बरकरार रखी गई, लेकिन उम्रकैद की सजा को बदलकर 14 साल की निश्चित कैद कर दिया गया।
- जीतन यादव (अपीलकर्ता सं. 5): कोर्ट ने नोट किया कि इसकी अपील पहले ही खारिज हो चुकी है।
केस टाइटल: उमेश यादव और अन्य बनाम बिहार राज्य केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 1072/2018 कोरम: जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन




