दिल्ली हाईकोर्ट से जस्टिस यशवंत वर्मा के इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रस्तावित ट्रांसफर के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (HCBA) ने सख्त रुख अपनाया है। यह विरोध तब सामने आया है जब उनके आवास से 15 करोड़ रुपये की बेहिसाब नकदी बरामद होने की खबरें सामने आईं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के इस फैसले ने इलाहाबाद के कानूनी समुदाय में नाराजगी पैदा कर दी है। बार एसोसिएशन ने अदालत को “कचरा पात्र” न बनने की चेतावनी दी है।
विवाद की पृष्ठभूमि
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस यशवंत वर्मा के ट्रांसफर की सिफारिश की। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 14 मार्च को एक अग्निकांड के दौरान उनके घर से ₹15 करोड़ की बेहिसाब नकदी बरामद की गई थी, जब वे घर पर मौजूद नहीं थे। हालांकि, कॉलेजियम के प्रस्ताव में ट्रांसफर के कारण स्पष्ट नहीं किए गए हैं, जिससे कानूनी समुदाय में अटकलें और चिंताएं बढ़ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह ट्रांसफर नकदी बरामदगी की जांच से अलग है।
एचसीबीए का कड़ा विरोध
इस फैसले के तुरंत बाद एक टीवी इंटरव्यू में इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने स्पष्ट किया कि बार एसोसिएशन इस ट्रांसफर का पूरी ताकत से विरोध करेगा। तिवारी ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहले से ही न्यायाधीशों की भारी कमी है, जिससे न्यायिक कार्यवाही प्रभावित हो रही है।

अनिल तिवारी ने कहा, “अगर किसी अधिकारी के पास से 15 लाख रुपये मिलते हैं, तो उसे जेल भेजा जाता है। लेकिन जब एक जज के घर से 15 करोड़ रुपये बरामद होते हैं, तो उसे उसके मूल न्यायालय भेजा जा रहा है।” उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट किसी भी विवादास्पद नियुक्ति के लिए “कचरा पात्र” नहीं है।
बार एसोसिएशन ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के प्रति अपनी जीरो-टॉलरेंस नीति को दोहराते हुए कहा कि वे इस फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे।