इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल का 69 वर्ष की आयु में दुर्घटना के बाद निधन

मुंबई, 30 मार्च 2025 – न्यायपालिका और देश ने आज एक महान न्यायविद को खो दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल का आज 69 वर्ष की आयु में एक दुखद दुर्घटना के बाद निधन हो गया। मुंबई में हुई दुर्घटना में उन्हें गंभीर सिर की चोटें आई थीं। चिकित्सकों के भरसक प्रयासों के बावजूद इलाज के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वह पिछले दो दिनों से वेंटिलेटर पर थे।

एक विशिष्ट न्यायिक करियर

3 मार्च 1956 को जन्मे न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1978 में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर यहीं से कानून की पढ़ाई पूरी की। वह दिसंबर 1981 में अधिवक्ता के रूप में नामांकित हुए और इलाहाबाद हाईकोर्ट में नागरिक कानून, संविधानिक कानून, कराधान, श्रम कानून और कॉरपोरेट मामलों में व्यापक रूप से अभ्यास किया।

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उन्हें 7 जनवरी 2004 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 18 अगस्त 2005 को स्थायी न्यायाधीश बनाए गए। सितंबर 2009 में उनका स्थानांतरण उत्तराखंड हाईकोर्ट में हुआ, जहां उन्होंने कुछ समय के लिए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया। 12 फरवरी 2018 को उन्हें मेघालय हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहां से उन्होंने सेवानिवृत्त हुए।

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न्याय, ईमानदारी और करुणा की मिसाल

न्यायमूर्ति अग्रवाल को उनकी न्यायिक प्रतिभा, निष्पक्षता और न्याय के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की, जिनमें उनके निर्णय गहन विधिक सिद्धांतों और मानवीय दृष्टिकोण का संतुलन दर्शाते हैं।

उनके सहयोगी उन्हें एक ऐसे मार्गदर्शक के रूप में याद करते हैं जिन्होंने कई युवा वकीलों को प्रेरित किया। उनके विनम्र स्वभाव और सुलभता के कारण वे सभी के प्रिय रहे।

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एक चौंकाने वाली क्षति

उनकी असामयिक मृत्यु की खबर से पूरे विधिक समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई है। देशभर से शोक संदेश आ रहे हैं, जिनमें उनके न्यायिक योगदान और सामाजिक सरोकारों को श्रद्धांजलि दी जा रही है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों ने उन्हें न्यायिक व्यवस्था की एक मजबूत आधारशिला बताया।

न्यायमूर्ति अग्रवाल का निधन न केवल न्यायपालिका के लिए, बल्कि उन सभी के लिए अपूरणीय क्षति है जो उनकी कार्यशैली और ईमानदारी से प्रभावित थे। उनका न्यायिक उत्तराधिकार आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।

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देश भारतीय न्यायशास्त्र की एक महान शख्सियत को अंतिम विदाई दे रहा है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

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