घरेलू हिंसा कानून के तहत ‘पीड़ित महिला’ की परिभाषा में नहीं आती सास, अपील का हक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट की श्रीनगर पीठ ने स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के तहत कोई महिला तब तक अपील दायर नहीं कर सकती जब तक वह “पीड़ित महिला” (aggrieved person) की परिभाषा में नहीं आती और मूल कार्यवाही में पक्षकार नहीं रही हो।

न्यायमूर्ति विनोद चटर्जी कौल ने यह फैसला CM(M) No. 310/2024 याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें एक महिला ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, बडगाम द्वारा 4 मार्च 2024 को और अपर सत्र न्यायाधीश बडगाम द्वारा 8 अगस्त 2024 को पारित आदेशों को चुनौती दी थी। ये आदेश घरेलू हिंसा की शिकायत पर आधारित थे, जो याचिकाकर्ता की बहू द्वारा दायर की गई थी।

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मामला क्या था

याचिकाकर्ता, जो पीड़िता की सास हैं, ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही में पक्षकार नहीं थीं, फिर भी उन्होंने उस आदेश के खिलाफ अपील करने की अनुमति मांगी जो उनके अनुसार उनके हितों को प्रभावित करता है। हालांकि, अपीलीय अदालत ने यह कहते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया कि याचिकाकर्ता “पीड़ित महिला” की परिभाषा में नहीं आतीं और इस प्रकार उन्हें धारा 29 के तहत अपील का अधिकार नहीं है।

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पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता के वकील श्री एस. एन. रतनपुरी और सुश्री फिजा खुर्शीद ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता पीड़िता की सास हैं, इसलिए उन्हें अपील करने का अधिकार होना चाहिए।

हालांकि, कोर्ट ने कहा:

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“अधिनियम की धारा 2(क) में ‘पीड़ित महिला’ की परिभाषा है — ‘ऐसी कोई महिला जो प्रतिवादी के साथ घरेलू संबंध में रही हो और जिसने प्रतिवादी द्वारा की गई घरेलू हिंसा का आरोप लगाया हो।’”

न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला:

“यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ‘पीड़ित महिला’ की परिभाषा में नहीं आती हैं और न ही वह ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही में पक्षकार थीं, अतः उन्हें अपील का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।”

प्रतिवादी के वकील श्री आमिर हुसैन खान ने बताया कि याचिकाकर्ता ने स्वयं भी घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत अपने बेटे और बहू के खिलाफ एक अलग याचिका ट्रायल कोर्ट में दायर कर रखी है, जो अभी लंबित है।

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अदालत का निर्णय

याचिकाकर्ता के वकील ने आग्रह किया कि उन्हें ट्रायल कोर्ट में पक्षकार बनाए जाने के लिए याचिका दायर करने की अनुमति दी जाए।

कोर्ट ने यह अनुरोध स्वीकार करते हुए कहा:

“यदि याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट के समक्ष पक्षकार बनाए जाने के लिए याचिका दायर करती हैं, तो ट्रायल कोर्ट संबंधित पक्षों से आपत्तियाँ लेकर कानून के अनुरूप निर्णय ले।”

इसके साथ ही याचिका का निस्तारण कर दिया गया।

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