पति की दूसरी शादी के बाद दर्ज कराई गई FIR, हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न का केस रद्द किया; कहा- यह ‘बदले की कार्रवाई’ है

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत दर्ज एक एफआईआर (FIR) को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने पाया कि पत्नी द्वारा आपराधिक कार्यवाही केवल पति द्वारा दूसरी शादी करने के बाद बदले की भावना से शुरू की गई थी।

जस्टिस संजय परिहार की पीठ ने पति और उसकी मां द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि इस तरह की कार्यवाही को जारी रखना “कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग” (Abuse of process of law) होगा। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पत्नी द्वारा पहले दायर किए गए कानूनी मामलों में दहेज की मांग और क्रूरता के आरोपों का कहीं भी जिक्र नहीं था, और ये आरोप पति के पुनर्विवाह के बाद ही लगाए गए।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता शकील-उल-रहमान और उनकी मां ने सीआरपीसी (CrPC) की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए एफआईआर संख्या 06/2023 को चुनौती दी थी। यह एफआईआर पत्नी (प्रतिवादी संख्या 2) की शिकायत पर 28 मार्च 2023 को महिला पुलिस थाना, अनंतनाग में दर्ज की गई थी।

दोनों की शादी 2016 में हुई थी और उनका एक बच्चा भी है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, वैवाहिक कलह के कारण पति ने 2022 में पत्नी को तलाक दे दिया था।

एफआईआर दर्ज कराने से पहले, पत्नी ने 24 अगस्त 2022 को भरण-पोषण (Maintenance) के लिए सीआरपीसी की धारा 125 और घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत कार्यवाही शुरू की थी।

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विवादित एफआईआर में पत्नी ने आरोप लगाया कि उसे मानसिक और शारीरिक क्रूरता का शिकार बनाया गया और दहेज के लिए परेशान किया गया। उसने दावा किया कि उसके पिता ने 16 लाख रुपये का ऋण लिया था, जिसका एक हिस्सा दहेज के रूप में दिया गया था। उसने यह भी आरोप लगाया कि पति ने दूसरी शादी कर ली है, जिससे उसका जीवन दुश्वार हो गया है।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं का पक्ष: याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि यह एफआईआर कानूनी प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग है और इसे केवल इसलिए दर्ज कराया गया है क्योंकि पति ने दूसरी शादी कर ली है। उन्होंने कहा कि धारा 125 सीआरपीसी और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पहले की कार्यवाही में पत्नी ने “शारीरिक हिंसा या दहेज की मांग के बारे में कोई आरोप नहीं लगाया था।”

वकीलों ने कहा कि एफआईआर के आरोप अस्पष्ट हैं और जांच के दौरान उनमें सुधार किया गया है। उन्होंने इसे तलाक और दूसरी शादी के जवाब में किया गया “काउंटरब्लास्ट” (Counterblast) बताया।

प्रतिवादियों का पक्ष: दूसरी ओर, प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि याचिका आधारहीन है क्योंकि जांच पूरी हो चुकी है और आरोप पत्र (Charge-sheet) पेश करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि जांच में पत्नी द्वारा पति के खाते में पैसे ट्रांसफर करने की पुष्टि हुई है और अन्य दीवानी मामलों का लंबित होना पत्नी को आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से नहीं रोकता है।

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कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

जस्टिस परिहार ने रिकॉर्ड की जांच की और पत्नी के रुख में एक महत्वपूर्ण विरोधाभास पाया। कोर्ट ने देखा कि हालांकि पत्नी ने दावा किया था कि उसे 25 जुलाई 2022 को ससुराल से निकाल दिया गया था, लेकिन उस समय उसने क्रूरता या दहेज की मांग का आरोप लगाते हुए कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की थी।

कोर्ट ने बताया कि पहले की याचिकाओं में, सास के खिलाफ दहेज से संबंधित उत्पीड़न के बारे में “एक शब्द भी नहीं” (Not even a whisper) कहा गया था। दहेज की मांग के आरोप पहली बार मार्च 2023 में दर्ज एफआईआर में सामने आए, जब पति ने 16 मार्च 2023 को दूसरी शादी कर ली थी।

शिकायत के पैराग्राफ 7 का हवाला देते हुए, कोर्ट ने नोट किया कि पत्नी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह एफआईआर इसलिए दर्ज करा रही है क्योंकि पति ने “उसकी सहमति के बिना और सरकार से अनिवार्य अनुमति प्राप्त किए बिना 16.03.2023 को शादी कर ली।”

कोर्ट ने कहा:

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“यह कथन पूरी तरह से स्पष्ट करता है कि आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत याचिकाकर्ता नंबर 1 (पति) की दूसरी शादी से प्रेरित थी।”

कोर्ट ने आगे कहा कि पहले दहेज के आरोपों को न उठाना और पति की दूसरी शादी के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज कराना यह दर्शाता है कि पत्नी उकसावे में थी और याचिकाकर्ताओं को सबक सिखाने के लिए यह कदम उठाया।

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों (दारा लक्ष्मी नारायण बनाम तेलंगाना राज्य और राजेश चड्ढा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने दोहराया कि धारा 498-A का उपयोग व्यक्तिगत स्कोर सेट करने के लिए नहीं किया जा सकता।

हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए एफआईआर संख्या 06/2023 से उत्पन्न कार्यवाही को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह एफआईआर स्पष्ट रूप से प्रतिशोध के रूप में दर्ज की गई थी और इसे जारी रखना कानून का दुरुपयोग होगा।

केस डिटेल्स:

केस टाइटल: शकील-उल-रहमान और अन्य बनाम स्टेशन हाउस ऑफिसर महिला पुलिस स्टेशन अनंतनाग और अन्य

केस नंबर: CRM(M) No. 162/2023 (CrLM No. 150/2024)

कोरम: जस्टिस संजय परिहार

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