जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट: वकीलों की अदालती दलीलें मानहानिपूर्ण होने पर आपराधिक मानहानि के मामलों का कारण बन सकती हैं

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि वकीलों द्वारा अदालत में दी गई दलीलें, यदि मानहानिपूर्ण प्रकृति की हों, तो उनके मुवक्किलों के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामलों का आधार बन सकती हैं। यह फैसला सत्य प्रकाश आर्य बनाम सैयद आबिद जलाली (सीआरएमसी संख्या 129/2017) के मामले में आया, जिसे न्यायमूर्ति संजय धर ने सुनाया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला सत्य प्रकाश आर्य (याचिकाकर्ता) और सैयद आबिद जलाली (प्रतिवादी) के बीच एक व्यापारिक विवाद के इर्द-गिर्द घूमता है। 2013 में, जलाली ने व्यापारिक समझौते के तहत आर्य को 14 लाख रुपये के चेक जारी किए। इसके बाद, आर्य ने जयपुर में शिकायत दर्ज कराई, जिसके कारण जलाली के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। जयपुर में जलाली की जमानत की सुनवाई के दौरान, आर्य के वकील ने कथित तौर पर दावा किया कि जलाली प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़ा हुआ है।

इन आरोपों के परिणामस्वरूप जलाली की जमानत याचिका खारिज कर दी गई और मीडिया में व्यापक कवरेज हुई, जिससे कथित तौर पर गोवा और जम्मू-कश्मीर में जलाली की प्रतिष्ठा और व्यावसायिक हितों को नुकसान पहुंचा। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा किसी भी आतंकी संबंध से मुक्त किए जाने के बाद जलाली को अंततः राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा जमानत दे दी गई।

मानहानि की शिकायत

इन घटनाओं के बाद, जलाली ने श्रीनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में आर्य के खिलाफ आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज कराई। मजिस्ट्रेट ने आर्य के खिलाफ रणबीर दंड संहिता (RPC) की धारा 499, 500 और 501 के तहत अपराधों के लिए प्रक्रिया जारी की।

मुख्य कानूनी मुद्दे और अदालत का फैसला

1. क्या अदालती दलीलों से मानहानि के आरोप लग सकते हैं?

अदालत ने पुष्टि की कि अदालती दलीलों या तर्कों में दिए गए मानहानिकारक बयान वास्तव में मानहानि के आरोपों का आधार बन सकते हैं। न्यायमूर्ति धर ने कहा, “इससे संकेत लेते हुए, यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि अपने मुवक्किल के निर्देश पर वकील द्वारा दिए गए तर्क, जो कि स्वयं में मानहानिकारक प्रकृति के हैं, ऐसे मुवक्किल पर आरपीसी की धारा 499 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाने का आधार बन सकते हैं।” 

2. श्रीनगर न्यायालय का अधिकार क्षेत्र

जबकि न्यायालय ने इस सिद्धांत को बरकरार रखा कि मानहानिकारक न्यायालयीय तर्क आपराधिक आरोपों को जन्म दे सकते हैं, फैसला सुनाया कि इस विशिष्ट मामले में श्रीनगर न्यायालय के पास अधिकार क्षेत्र नहीं था। न्यायमूर्ति धर ने कहा, “न तो कथित मानहानि का कार्य श्रीनगर में न्यायालयों की स्थानीय सीमाओं के भीतर हुआ है और न ही इसके परिणाम श्रीनगर में ट्रायल मजिस्ट्रेट की स्थानीय सीमाओं के भीतर हुए हैं।”

3. मीडिया रिपोर्टों की प्रकृति

न्यायालय ने पाया कि साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत समाचार पत्र रिपोर्टें मानहानिकारक प्रकृति की नहीं थीं, क्योंकि उनमें मुख्य रूप से जलाली को आतंकवाद के आरोपों से मुक्त किए जाने की रिपोर्ट थी। न्यायमूर्ति धर ने कहा, “उपर्युक्त समाचार पत्रों की कतरनों/रिपोर्टों से, यह स्पष्ट है कि इनमें से कोई भी समाचार रिपोर्ट मानहानिकारक प्रकृति की नहीं है।”

न्यायालय का निर्णय

हाई कोर्ट ने श्रीनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को दरकिनार करते हुए आर्य की याचिका स्वीकार कर ली। इसने मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह शिकायत को उचित अधिकार क्षेत्र वाली अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए जलाली को वापस कर दे।

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न्यायमूर्ति धर ने जोर देकर कहा, “याचिकाकर्ता राजस्थान का निवासी है और उस पर तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य की सीमाओं से परे आपराधिक मानहानि का अपराध करने का आरोप है, इसलिए उस पर इस मामले में श्रीनगर में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।”

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