झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दुकानों को अवैध रूप से ध्वस्त करने के लिए मुआवजा देने का निर्देश दिया

झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक निजी नागरिक की पांच दुकानों को अवैध रूप से ध्वस्त करने के लिए 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है, साथ ही दुकान मालिक को हुई मानसिक पीड़ा के लिए 25,000 रुपये का अतिरिक्त भुगतान करने का भी निर्देश दिया है।

पृष्ठभूमि:

यह मामला झारखंड राज्य के अधिकारियों द्वारा 29 अप्रैल, 2011 को याचिकाकर्ता राजेंद्र प्रसाद साहू की छह शटर वाली पांच दुकानों को अवैध रूप से ध्वस्त करने के इर्द-गिर्द घूमता है। दुकानें चतरा जिले के मौजा चौर में 5 दशमलव भूमि पर स्थित थीं, जिसके बारे में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि यह उनकी रैयती (किराएदार) भूमि है जिसे उन्होंने 1973 में पंजीकृत बिक्री विलेख के माध्यम से खरीदा था।

मुख्य कानूनी मुद्दे:

1. क्या राज्य के अधिकारियों के पास बिना कानूनी प्रक्रिया के याचिकाकर्ता की दुकानों को ध्वस्त करने का अधिकार था

2. क्या याचिकाकर्ता के पास विवादित भूमि पर वैध स्वामित्व और कब्जे का अधिकार था

3. क्या हाईकोर्ट अवैध कब्जे के मामलों में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत राहत दे सकता है

न्यायालय की टिप्पणियां और निर्णय:

न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय देते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

1. अवैध विध्वंस पर:

न्यायालय ने राज्य के कार्यों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा: “ध्वस्त करने में प्राधिकरण की कार्रवाई दुकानों को पूरी तरह से अवैध, मनमाना और मनमौजी बनाना है।” इसने इस बात पर जोर दिया कि कार्यकारी कार्रवाइयों को “उद्देश्यपूर्ण, तर्कसंगत, निष्पक्ष और गैर-मनमाने ढंग से” किया जाना चाहिए और “प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए जल्दबाजी में” नहीं लिया जाना चाहिए।

2. भूमि स्वामित्व पर:

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के पास अपने स्वामित्व का समर्थन करने वाले वैध दस्तावेज थे, जिसमें 1973 का पंजीकृत बिक्री विलेख, म्यूटेशन रिकॉर्ड और किराए की रसीदें शामिल थीं। इसने नोट किया कि राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि को दिखाने वाला कोई सबूत पेश करने में विफल रहा।

3. हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर:

न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी ने ऐसे मामलों में राहत देने के हाईकोर्ट के अधिकार की पुष्टि की, उदाहरणों का हवाला देते हुए: “यदि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी व्यक्ति के किसी भी वैध अधिकार को खतरे में डाला जाता है तो रिट कोर्ट दर्शक नहीं रह सकता।”

4. कानून के शासन पर:

अदालत ने कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने के महत्व पर जोर दिया, पिछले फैसले का हवाला देते हुए: “यदि अदालत इस तरह की मनमानी कार्रवाई को स्वीकार करती है, तो कानून के शासन के लिए कोई सम्मान नहीं होगा और गैरकानूनी तत्व फिरौती के लिए कानून की उचित प्रक्रिया को अपने कब्जे में ले लेंगे और यह अराजकता के लिए एक अच्छा दिन होगा।”

अंतिम आदेश:

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि:

1. ध्वस्त की गई दुकानों के निर्माण की लागत के लिए ₹5 लाख का मुआवजा दिया जाए

2. याचिकाकर्ता को हुई मानसिक पीड़ा और पीड़ा के लिए अतिरिक्त ₹25,000 का भुगतान किया जाए

3. छह सप्ताह के भीतर मुआवजा आदेश का अनुपालन किया जाए

4. यदि आवश्यक समझा जाए तो दोषी अधिकारियों पर दायित्व तय करने के लिए कार्रवाई की जाए

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मामले का विवरण:

– मामला संख्या: डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 2628/2011

– पीठ: न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी

– याचिकाकर्ता: राजेंद्र प्रसाद साहू @ राजेंद्र प्रसाद शौंडिक

– प्रतिवादी: झारखंड राज्य और अन्य

– वकील: याचिकाकर्ता की ओर से श्री आयुष आदित्य और श्री आकाश दीप; राज्य की ओर से श्री मनोज कुमार

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