झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) के तहत एडजुडिकेटिंग अफसर नियुक्त करने की प्रक्रिया चार सप्ताह में पूरी करने का निर्देश दिया। यह पद साइबर धोखाधड़ी और डाटा उल्लंघन के मामलों के निस्तारण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
मुख्य न्यायाधीश तर्लोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने यह आदेश एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए पारित किया। यह याचिका मनोज कुमार सिंह द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने पिछले 21 वर्षों से इस पद पर किसी भी अधिकारी की नियुक्ति न होने की ओर ध्यान आकर्षित किया।
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह चार सप्ताह में नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी कर जानकारी अदालत को दे। मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर को होगी।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता उत्कर्ष सिंह ने अदालत को बताया कि आईटी अधिनियम की धाराओं में साइबर अपराधों के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति का प्रावधान है, लेकिन एडजुडिकेटिंग अफसर की नियुक्ति न होने के कारण यह लागू नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि इस अधिकारी को दीवानी अदालत जैसी शक्तियां प्राप्त होती हैं—जैसे व्यक्तियों को तलब करना, गवाहों से पूछताछ करना, दस्तावेज़ पेश करने का आदेश देना और पीड़ितों को पाँच लाख रुपये तक का मुआवज़ा दिलाना।
अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि इस पद की नियुक्ति से सामान्य अदालतों पर बढ़ते साइबर अपराध मामलों का बोझ भी कम होगा। अदालत ने माना कि यह नियुक्ति आईटी अधिनियम के तहत एक वैधानिक दायित्व है और इसमें और देरी नहीं की जानी चाहिए।