जम्मू स्थित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने जम्मू जिले के तहसील सुचेतगढ़ के गांव अब्दाल (नई बस्ती) में एक मनोरंजन पार्क के निर्माण हेतु की गई अंतिम भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने यह निर्णय जम्मू और कश्मीर भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1990 (संवत) के तहत अनिवार्य प्रकाशन नियमों के पालन न किए जाने के आधार पर सुनाया।
न्यायमूर्ति संजय धर ने यह फैसला रतन चंद एवं अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर एवं अन्य [वाचिका संख्या WP(C) No. 1361/2023] में सुनाया, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने दिनांक 24.04.2019 को भूमि अधिग्रहण अधिकारी, आर.एस. पुरा द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे और उनके पूर्वज पिछले 70 वर्षों से शांतिपूर्वक खेती करते आ रहे थे और अधिग्रहण प्रक्रिया के दौरान उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला।
पृष्ठभूमि:
यह अधिग्रहण प्रक्रिया पर्यटन विभाग, जम्मू के निदेशक की 21.09.2016 की अनुशंसा के आधार पर शुरू की गई थी। 15.12.2016 को राज्य भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 4(1) के तहत प्रारंभिक अधिसूचना जारी की गई। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्हें धारा 4, 5, 5-A, 6, 9 या 9-A के तहत कोई नोटिस नहीं मिला, न ही अधिसूचना का प्रकाशन सरकारी राजपत्र में या किसी क्षेत्रीय भाषा के अखबार में किया गया।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें:
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया राज्य अधिनियम के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन करती है। विशेष रूप से, धारा 4(1) की अधिसूचना का समुचित प्रकाशन नहीं हुआ, जिससे उन्हें धारा 5-A के तहत आपत्ति दर्ज कराने का वैधानिक अधिकार नहीं मिला। उन्होंने यह भी कहा कि बिना उनकी सुनवाई के एकतरफा (ex parte) रूप से निर्णय ले लिया गया।
प्रत्युत्तर में उत्तरदाताओं की दलीलें:
उत्तरदाता संख्या 5 – भूमि अधिग्रहण अधिकारी – ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता केवल किरायेदार हैं और भूमि पर उनका कब्जा नहीं है, क्योंकि पार्क निर्माण के लिए भूमि पहले ही अधिग्रहीत की जा चुकी है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर धर्मार्थ ट्रस्ट की एक चिट्ठी का हवाला दिया, जिसमें ट्रस्ट ने मालिकाना हक और अधिग्रहण व मुआवज़े को लेकर सहमति जताई थी। उत्तरदाताओं का कहना था कि अधिग्रहण प्रक्रिया सभी आवश्यक नियमों के अनुसार पूरी की गई।
कोर्ट का विश्लेषण:
कोर्ट ने राज्य भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 4(1) के तहत अधिसूचना के प्रकाशन की अनिवार्य विधियों की समीक्षा की, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रमुख स्थानों पर नोटिस चिपकाना;
- ढोल की थाप से और स्थानीय पंचायत/पटवारियों के माध्यम से प्रचार करना;
- सरकारी राजपत्र में प्रकाशन करना;
- दो दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशन करना, जिनमें से एक क्षेत्रीय भाषा में हो।
कोर्ट ने पाया कि अधिसूचना केवल अंग्रेज़ी अखबार “डेली एक्सेलसियर” में प्रकाशित हुई थी और न तो किसी क्षेत्रीय भाषा के अखबार में, न ही सरकारी राजपत्र में इसका प्रकाशन हुआ। इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर ढोल या पंचायत के माध्यम से प्रचार का कोई रिकॉर्ड भी नहीं था।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों –J&K Housing Board बनाम कुवंर संजय कृष्ण कौल तथा खूब चंद बनाम राजस्थान राज्य – का हवाला देते हुए दोहराया:
“राज्य भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 4 के तहत अधिसूचना के प्रकाशन की जो प्रक्रिया निर्धारित है, वह अनिवार्य है और उसमें बताए गए सभी तरीकों से प्रकाशन करना अनिवार्य है। लेकिन इस मामले में रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि अंग्रेज़ी के एक समाचार पत्र को छोड़कर किसी भी अन्य माध्यम से अधिसूचना का प्रकाशन नहीं किया गया। केवल इसी आधार पर अधिग्रहण की कार्यवाही रद्द की जा सकती है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता पुरस्कार पत्र के साथ संलग्न वितरण विवरण में किरायेदार के रूप में दर्ज हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि वे “रुचि रखने वाले व्यक्ति” हैं जिन्हें धारा 5-A के तहत नोटिस और सुनवाई का अधिकार है। यह अधिकार उन्हें दिए बिना अधिग्रहण किया गया, जिससे उनका आपत्ति का अधिकार बाधित हुआ।
निर्णय:
कोर्ट ने पाया कि “भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने राज्य अधिनियम के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन किया है,” और इस आधार पर विवादित अधिसूचना और पूरी अधिग्रहण कार्यवाही को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने उत्तरदाताओं को निर्देश दिया कि वे भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के तहत नई अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू करें और उसे छह महीने के भीतर पूरा करें। यदि भूमि की आवश्यकता नहीं रह जाती है, तो उसका कब्जा दर्जधारकों को वापस सौंपा जाए।
मामले का शीर्षक: रतन चंद एवं अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर एवं अन्य
मामला संख्या: WP(C) No. 1361/2023
पीठ: न्यायमूर्ति संजय धर