जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने कैदियों के स्थानांतरण पर महबूबा मुफ्ती की PIL खारिज की, राजनीतिक उद्देश्य पर सवाल

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने राज्य से बाहर की जेलों में बंद कैदियों को वापस जम्मू-कश्मीर की जेलों में स्थानांतरित करने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि याचिका में वास्तविक जनहित के बजाय राजनीतिक लाभ लेने की मंशा अधिक स्पष्ट होती है।

मुख्य न्यायाधीश अरुण पाली और न्यायमूर्ति राजनेश ओसवाल की पीठ ने मंगलवार को 15 पन्नों के आदेश में इस याचिका को खारिज करते हुए कड़ी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता खुद को एक खास वर्ग के लिए न्याय का पैरोकार दिखाने और राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से कोर्ट आई प्रतीत होती हैं।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने अतीत में जिस तरह की हिंसा और अशांति झेली है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। देश की एकता और अखंडता के खिलाफ काम करने वाली ताकतों के कारण बने हालात को देखते हुए इस मुद्दे को केवल सामान्य प्रशासनिक मामला मानकर नहीं देखा जा सकता।

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि याचिका के राहत खंड में खुद याचिकाकर्ता ने जम्मू-कश्मीर की “विशेष परिस्थितियों” को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा था कि केवल “अनिवार्य और अत्यंत आवश्यक परिस्थितियों” में ही कैदियों को बाहर की जेलों में रखा जाए। हालांकि, हाई कोर्ट ने कहा कि याचिका में यह स्पष्ट ही नहीं किया गया कि ऐसी असाधारण परिस्थितियां आखिर होंगी क्या।

पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि जनहित याचिका को किसी भी तरह से राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने या अदालत को राजनीतिक मंच में बदलने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अदालत ने दो टूक कहा कि चुनावी लाभ हासिल करने के लिए अदालतों का सहारा नहीं लिया जा सकता।

अंडरट्रायल कैदियों के संदर्भ में अदालत ने कहा कि जिन कैदियों की ओर से याचिका दायर किए जाने का दावा किया गया है, उनके पास अपनी हिरासत से जुड़ी शिकायतों के समाधान के लिए कानूनी रास्ते पहले से उपलब्ध हैं। यदि उन्होंने इन उपायों का इस्तेमाल नहीं किया है, तो इससे यह संकेत मिलता है कि वे वास्तव में अपनी मौजूदा हिरासत से आहत नहीं हैं।

हाई कोर्ट ने दोहराया कि कोई भी जनहित याचिका तभी स्वीकार की जा सकती है जब उसमें प्रथम दृष्टया जनहित स्पष्ट रूप से दिखे। अगर याचिका के पीछे बाहरी या निजी कारण नजर आते हैं, तो अदालत का उसमें हस्तक्षेप न करना ही जनहित में होता है।

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इन सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद हाई कोर्ट ने याचिका को गलत आधार पर दायर बताया और खारिज कर दिया।

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